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पीयूपयर्पिणी-टीश सू ५७ अनगार धर्मनिरूपणम धम्म अणगारधम्मं च । अणगारधम्मो ताव-इह खलु सबओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ताअगाराओअणगारियंपव्वडयस्ससम्बाओ पाणाडवायाओ वेरमणं मुसावाय-अदिण्णादाण मेहुण-परिगहमनगाधर्ममेव व्याचष्टे-'अणगारधम्मो ताव' इति । अनगाधर्मन्तावत्-तावत्= प्रधनन् अनगाधर्म उच्यते-'इह खलु सबनो सम्बचाए मुढे भविता अगाराओ अगगारिर पन्वायम्म सव्वानो पाणाडवागतो वेरमण इह स सर्वत सर्वात्मना मुन्टो भूबाऽगागठनगारिता प्रवन्तित्य सर्वमानागातिपाताद्विरमगन्-इह गति खल स्वतः=द्रव्यतो भावतधेयर्थ , सर्वाऽऽनना-परमवैगग्येग मुण्टो मूवा-दन्यतो मुण्टो , मलके लञ्चिनक्य , मावतस्तु पागगामपनयनमिति गुण्डलशगवर्मयोगा पुरषो मुण्ड उच्यते, अत्र 'अगं आदिन्योऽच्' इयच्प्रयय , तादृशो नचैयर्थ , लगागद-गृहात-गृह (अणगारसम्मो ताव) अनगार का धर्म वे ही जीव पालन क्न्त है जो (इह खलु सबनो सन्चत्ताए 'मुढे भवित्ता नगारानो अणगारियं पव्वडयम्स सव्वानो पाणाडवायाओ वेरमणं मुसावाय-मादिण्णादाण-मेहुण-परिग्गह-राईभोयणवरमण) यहा सर्व प्रकार से-उन्य एव मावन्दप से, स्वात्मना-परमवैराग्य मपन्न होकर नुदित हो जाते हैं । यह मुडित अदत्या द्रव्य एव माव के मेट से दो प्रकार का है केगों का सृचन काना द्रव्यमुडन है, एव उपायों का त्याग करना मावनुटन है, मुटित होर जो अपने गृह का परिचाग कर साधु की दीक्षा से दीक्षिन हो जाता है। उसका नाम अनगार है। इन अनगार अवस्था में
(१) मुड पद से मुदित पुस्प का मत्रीय अच्नयन करने से ग्रहण हुआ है। म. (अणारधम्मो वाव) मनभाना धर्म तर न उरे २ (दह खलु मब्बओ सव्वत्ताए मुंडे मविचा आराओ अणरिय पव्वइयत्त सवाओ पाणाइवाओ वेरमण मुसाबार-अदिण्णादाण मेहुण-परिगह-राईभोयणवैरमण) मही सर्व प्रयी -व्य तेभर लाप 34थी सर्व प्रशारे परभવૈગન્ય પન્ન થઈ જાય છે આ સુડિત અવસ્થા દ્રવ્ય તેમજ ભાવ ના ભેદથી બે પ્રકારની કેશલુચન કરવું” એ દ્રવ્યમુડન છે, તેમજ કપાયેને ત્યાગ કો’ એ ભાવમુંડન છે સુડિત થઈ જે પોતાના ઘરને ત્યાગ કરી સાધુની દીક્ષાથી દીક્ષિત થઈ જાય છે તેમનું નામ અનગાર છે આ અનગાર આવ
(१) मुढ शुयी भुडित पुपनो मत्वर्थीय अच् प्रत्यय बगाउपाथी ગ્રહણ કર્યો છે,