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औपपातिकसने वल-चित्त-कीलण-दवप्पिया गंभीर हसिय-भणिय-पीयगीय-णच. ण-रई वणमाला-मेल-मउ कुंडल-मच्छंद-विउव्वियाहरण-चारुगतवर्तिन , ते कीदृशा । अगऽऽ-'चचल चाल-चित्त-कीलण-यपिया' चार-चपलचित्त-काइन-टर प्रिया -चावलादपि चपानि नित्तानि येपा ते चालनपलचिना =अनिनपर मानमा , कीडन-क्रीडा, दरच परिहास कीटानी प्रियो येगा त कौटायप्रिया , तत पदद्वयस्य कर्मधारय । 'गभीर हसिय-भणिय-पीय-गीय-णचण-रई गम्भीर-हसित-भगित-- प्रिय-गीत-नर्तन-रतय -गम्भीरम् इतरज्ञेय हसित-हास्यम्, भगित-वाहप्रयोग , प्रिय येपा त गम्भीर-मित-भगित-प्रिया , गीतनर्तनयो रतियेगा ते गीतन नरतय , तत पद्यस्य कर्मधारय । 'वणमाला-मेल मउट-कुंडल-सछंट- विउन्धिया हरण-चारुरिभूसण-परा' वनमाला ऽऽमेल मुकुट-कुण्डल-स्वच्छन्द-निर्विताऽऽभरण-चारु विभूषण धरा वनमाला र नादिमयाss भरणविशेष ,आमेल --पुप्परचितालबारविशेष ,मुकुट-सुवर्णमय भिराभूपगम्, उण्डर कोऽभरणम् , एतदतिरिक्तानि-स्वच्छ दपितुर्वितानि स्याभिप्रायानसारासद्य प्रकटीकतानि आभरणानि, कहते है-(चचल चवल-चित्त-कीलण-दव-प्पिया) अनि चपल चित्तपाले ये व्यन्तर देव, क्रीडा एस परिहास-प्रिय हुआ करते है। (गभीर-हसिय-भणिय-पीय-गीयपञ्च-गरई) दसरा द्वारा अज्ञेय ऐसे हसित-हसन म तथा बोलने की चतुराई में ये विशेष निपुण होते है, अथवा हमित एव भगित, ये दो नाने इन्हें विशेष प्रिय होती है । गीत और नर्तन में इन्हें विशेष अनुगग होता है । (वणमाला-मेल-मउड-कुडल-सच्छंद-विउरिया-हरण-चारु-विभूसण-घरा) वनमाला-रनादि द्वारा निर्मित आभरणविशेष, आमेलक-पुष्पों द्वारा रचिन अलकार निशेष, मुकुट-सुर्गमयशिरोभूपणा, कुडल-कर्णाभरण, एव अपनी इच्छानुसार निष्पादिन और भी अन्य आभरण ये ही जिनके सुहावने आभूषण चवल-चित्त-कोलण-दय-पिया) मई १ ययय चित्तपात व्यन्तर हे श्री मेष परिक्षामप्रिय होय छ (गभीर हसिय-भणिय पीय-गीय णचण रई) भीती ન જાણી શકાય એવા હમિત-હેસવામાં તેમ જ ભાણિત બોલવામાં તેઓ વિશેષ નિપુણ હોય છે અથવા હસિત એવ ભણિત આ બે વાતે તેમને વિશેષ પ્રિય હોય છે ગીત અને નાચમાં તેમને વિશેષ અનુરાગ હોય છે (वणमाला-मेल मउड कुडल सच्छद विउब्बिया हरण चार विभूसण धरा) पनाરાદિ દ્વારા નિર્મિત આભરણ વિશે, આમેલ-પુષ્પ દ્વારા રચિત અલકાર વિશેષ, મુકુટ–સુવર્ણમય શિભપણુંકુ ડલ-કર્ણાભરણ, તેમ જ પિતાની ઈચ્છા બમાર નિષ્પાદિત બીજ પણ આભરણે, એ જ જેમના હામણા આભૂષણ છે