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पौयूपयपिणी-टीका सू ३२ महामेरम्यागिशिष्यवर्णनम्
३२१ जिडदिया णिव्भया गयभया सचित्ताचित्तमीसिएसु दव्वेसु विरागयं गया सजया [विरता] मुत्ता लहुया णिरवकंखा साहू णिया चरति धम्म ॥ सू० ३२॥ या गयभया' निर्भया गतभया , 'सचित्ताचित्तमीसिएमु दव्वेमु' मचित्ताऽचित्तमिश्रितेषु द्रव्येपुञ्चन्तुपु 'पिरागय गया' गिगता गता-गग्य प्राप्ता । 'सजया' नयता -नयमवन्त । 'विरता' विग्ता हिंसादिभ्यो निवृत्ता, 'मुत्ता' मुक्ता -लोभहिता , 'लहुआ' लघुका - स्वन्पोपवित्रारितगा लघुभृता । 'गिरवकमा' निरसकाङ्क्षा =उभयलोकमुसाभिलापार्जिता , यत पूवाक्तगुगविशिष्टा , अलण्य 'साह' मापा-गोक्षसापका । 'गिडया ' निभृता - विनीना जा याठिमढयनिता इयर्थ , ' चम्म ! धर्म-श्रुतचाग्निलक्षगम् । 'चरति ' चरन्ति=आगधयन्ति ॥ सू० ३२॥ (णिभया गयभया) निर्भय य, दम हतु इन्हे कहीं भी भय नहा लगता या, (सचित्ताचित्तमीसिएमु दव्धेमु विरागय गया) सचित्त, अचित्त और सचित्ताचित्त द्रव्या म ये वैगग्य युक्त थे, (सजया पिरता मुत्ता) सयमशाली, हिंसाढिनिवृत्त और लोभरहित थे, [लया स्वप उपवि के धारक होने से ये लघु-लाधवगुणस्पन थे, (णिरनामा) दहलोक और पग्लोक के सुखों की अभिलाषा से रहित थे, अत एन ये मुनि गग (साई) मावु, अर्थात् मोक्षसाधक थे। भगवान महावीरके ये साधु (णिडया) निभूत-जा यादि मद से रहित होनेके कारग विनीत होकर (धम्म) श्रुतचारित्रलक्षण धर्म की (चरंति) आराधना करते थे ।। सू०३२ ।।
या माधुसा स्तिन्दिय ता, (णिभया गयभया) निर्भय हुता, तेथी तभन डाए लय सातु नहि तेया (मचित्ताचित्तमीसिएसु दव्वेसु विरागय गया ) मयित्त, मचित्त भने सिभित्तीचित्त द्रव्योभा वैराज्यवान हता, (सजया पिरता मुत्ता) ५ यमशाली, माहिया निवृत्त भने सलाहित उता, (लहया ) स्व८५ उपधिना धार४ पाथी तमा सधु-साधन मपन्न हता, (णिरवकखा) sas मने पसाउना सुभानी मलिसापाथी सहित ता तेथी ते भुनिया (साहू) साधु सट भाक्षसा५४ हता समान भडापीरन॥ २॥ माधुया (णिहुआ) निक्षत-तत्याहि महथी क्षित डोपाने ४२ वीनीत यधने (धम्म) श्रुतम्यारित्र३५ धर्मनी (चरति) मा२१. धना ता ता (भू २)