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ব্যাথাবিষ্ট
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सुपण्ह-सासा गामे गामे एगगयं पगर णगरे पंचरायं दृडजंता श्रेष्ठा -सार्यमाहा - धागत यामायिन । 'मुमुमुमभाग मुपण्ड सासा' मनि(मुशुचि) सुसम्भापा-सुप्रभ-स्वागायुष्ट श्रुतयो येषा त मयुनय -
ग या -मसिमान्ता, अथवा मुशुचय - सम्यस्युझिमत्त । मुग-युगजनक गम्भापो येषा ते गुमाया - चिदपि कद्रचारण न कुर्वन्त । गोमना प्रशा येगा ते गुण- प्रमितमगुचिनप्रअकाग, शोभना आया येया ते स्वागा-मुक्तिमाय , चतुगामपा कर्मवास्ये-मुश्रुतिसम-भाषामुप्रभस्वाशा , एवविधा मन्त 'गामे गामे एगरागाम गाम कगनम-प्रनिग्राममाजगाम , अन्य 'दजता' इत्यनेन सहान्यय । 'जगरे नगर पचराय नगरे नगर पगनम-प्रतिनगर पञ्चरात्र, 'दइन्नता' द्रान्त बसन्त , यातूनामनका वात, 'जिदिया जिनन्टिया 'णिभ मुनिजन सिद्रिरूप पग-पत्तन कम-मुग होते हैं। (समणपरसत्यवाहा ) इनके साया श्रम गश्रेष्ठकप सार्थ त्यसमायिजन रोते हे। (मुमुइ-मुसमास मुपाहमासा) सतमिदाता के ये पारगत होते है, अथा दनका सिद्धान्त समीचीन-निर्दोष होता है, अथवा य मिशिष्ट-शुद्धि-पन्न होते है । भाषा इनको वडा ही मनोमुग्धकारी होता है । कभी माय कटुक भाषा का उच्चारण नहा करते है। ये जो भी प्रश्न करते हे वह प्रमागोपेत होता है व्यर्थ के अक्षरों का उसम समावेश नही रहता । सासारिक पदाथा में किस। म भा इनकी इच्छा जागृत नहीं होती, सिर्फ मुक्ति प्रान करन क भाना हा एक इनकी रहा करती है। (गामे गामे एगराय पयरे पचरायं जता) ये साधु ग्रामों म एक रात और नगरों में पाच रात निगाम करते थे। (जिदिया) ये जितेन्द्रिय ये
पशु-पत्तनानी सन्मुपाय छ (सनणरसत्यवाहा) तेमनी माथी भाs ३५ सार्थवाह-व्यवसायी न होय (सुसुइसुमभामसुपण्हमामा) मत-मिद्धा તેમાં તેઓ પારગત હોય છે અથવા તેના સિદ્ધાન્ત નિર્દોષ હોય છે, અથવા તેઓ વિશિષ્ટ શુદ્ધિભ પન્ન હોય છે ત્યારે તેમને બહુ જ મને મુગ્ધ કરવાવાળી હોય છે દીપણ તેઓ કડવીભાવાને ઉચ્ચાર કરતા નથી તેઓ જે કાઈ પ્રશ્ન કરે છે તે પ્રમાણવાળા હોય છે અને તેમાં સમાવેશ રહેતો નથી સાંસારિક પદાર્થોમાં ઈમાં પણ તેમની ઈચ્છા જાગૃત થતી નથી मात्र भुक्षित आस पानी लानड तभने का ७२ (गामे गामे In जयरे जयरे पचराय दूइजता) मा आधुमे! गाभा-यामागे. od संधी भने नगरीमा पाय शत सुधी निघाम ४२ता खा (जिइल्यिा)