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औपपातिय
पिवास - धवलं मोहमहावत - भोग- भममाण- गुप्पमाणु-च्छलंतपचोणियत - पाणिय- पमाय - चंड- बहुदुह - सावय-समाहयुद्धायमाण-पत्रभार- घोर-कंटियमहारखरवंत - भेरवरवं अण्णाण भनम
एच
हुधा सगळा प्राग्भाग्योर कन्दितमहा भैरववम मोहरूप गर्न भोग भ्राम्यत - चकाकांरंग भ्रमत्, गुप्यत्=चपरीभवत, उतिन 'पचोणिय' पनिपतत-अन पतत्, पानीय जल या स तथा प्रमादा भवान्यम्त दुष्टथापा चण्डा =कोपजीव्य नहुदुष्टा = अतिदुष्टस्वभाना, थापा -- सक जस्तै 'समान्य ' समाहता = प्रता-आधात प्राप्ता 'उदायमाण' जन्त= उच्छलन्त चेष्टमाना वा समुद्रपक्षे मस्यादय ससारपक्षे पुरपादय, तेपा 'प प्राग्भार --समूहो यत्र स तथा, तथा घोगेय कन्दित्तमहाग्यमा सस्वनप्रतिनग्न-प्रतिर्थ्यान कुर्वन् भैरवरवो=भयानको यत्र स तथा ततखयाणा पना कर्मधारय, तम् - अगाम भगत मच्छ-परिहत्य अगिहुयिदिय-महामगर- तुरिय वरिय सोखुर्भेमाग-नचत-चत्रलचचल-चलत-घुम्पत- जलसमूह' अज्ञान-भ्रमन्मत्स्य परिहस्तानिभृतेन्द्रिय
समुद्र के मोहरूप महा-आप मे भोगरूप जल चक्राकार से घूम रहा है, अयत चचल हो रहा है, उछल रहा है, उछल कर फिर नीचे गिर रहा है । तथा-टम सार समुद्र मे प्रमाद आदि हा कोधी एवं जतिदुष्ट स्वभाव वाले हिंसक जीन है । इन के द्वारा आघात को प्राप्त होकर समस्त र सारी जीनों-पुरुष आदि (समुद्रपक्ष में मत्स्यादिक जलचर जीवों) का समूह उधर-उपर भागता फिरता है। उन्हीं स्सारी जीवों के भयकर आकन्दन की महाभाषण प्रति पनि हमर सार समुद्र मे हो रही है। तथा-(अण्णाणभमतमच्छपरिस्त्य अणिहु यिदिय- महासागर- तुरिय-चरिय खोखुब्भमाणनचत- चवल चंचल चलत-घुम्मत - जलसमूह) कदिय - महारा-रवंत-भेग्य-रव) गा ससार समुद्रना भोड३य भट्टा व्यावर्त्तमा ભેળરૂપ જલચકની પેઠે ઘૂમી રહ્યુ છે અહુ વેગ થઇ રહ્યો છે, ઉછળી રહ્યુ છે ઉછળીને પાછું નીચે પડે છે તથા-આ આદિ જ ક્રોધી તેમજ અતિદ્રુષ્ટ સ્વભાવવાળા હિંસક આઘાત પામીને સમસ્ત ન સારી દિક જલચર જીવા)ના સમૃહ જવાના ભયૐ કદનને મહાભીષણ પરત્વે આ સમારમમુદ્રમા પડે छे तथा (अण्णाण-भमतमन्छ परिहत्य अणिहुर्थिदिय-महासागर - तुरिय चरिय सोख
પ્રમાદ
જીવે-પુરુષ દિ આમતેમ ભાગનાચ
સ સારસમુદ્રમા જીવ છે, તેમના દ્વારા
(સમુદ્ર પક્ષમાં મત્સ્યા ૨ છે તે સ મારી