________________
-
सामागम त न
निरूपण
पीयपयपिणी टीया ग ३० मातोरग्यागिशिष्यवर्णम
३१७ भीमदरिसणिनं तति, धिड-धणिय-निष्पकंपेण तुरिय-चवलं संवर-वेग्ग-तुंगकूवय-सुसंपउलेण णाण-सिय-विमल-भूसिएणं सम्मल-विमुद्ध-लड-गिजामएणं धीरा संजमपोएण मीलक'ससारमागरम तरन्ति, अम्म गमगपोगन' दयो र यमाणेन सम्बन्ध । साग्भयोदिग्ना “यमिा यमोना तातु पारन्ता यर्थ । फिम्मृतन यमपोयाह-'पिइधणियनिष्पकपेण' धृति निकनि प्रापेग-वृतिरूपेण ग्नुबन्धनन निकम् अ यर्थं निष्प्रकम्प = सम्पनरहितन्तेन मपोनेन, 'तुरिया चरितचपलम् अनिमीत्रम् ,-'सवर-वेरग्ग-तुग
वय मुगपउत्तेण' र गाय-नुज कृपा-मु प्रयुकोन तन पर प्रागातिपातादिपिरतिरूप , पेग विमानभिषन एतयो यस्तु = अ युच कृपा-पोतम यस्थित स्तम्भ,, तन मुटु सम्प्रयुक्त -मम्यानया प्रभाजितस्तन, 'णाग सिय-पिमल-मृसिएण' मान-मितनिमोटिनेन, ज्ञानमेव मित न बस तप विमलम उन्टिन यत्र तेन, मूले मकार प्राप्त गात। पपनाम्पिन पतपटमण्ट ठमण्डितपटाकर्षणन नौका वेगगामिनी भवति । सति सायनोपेनेऽपि पोने हर्ग पारग भा यमि याह-'सम्मत्तविमुद्धलद्धणिनाम(पिदमणियणिप्पकपण) तिन प रजनन से जो अयत निप्रकप है। (तुरियचवल) गान जिसका जयत गीगामी ह (मवर-वेग्गा-तुग कृपय-सुसपउत्तेण) म्घर-प्राणातिपातादि से निवृत्तिरूप चिरति न गम्ग-विषा में अनभिष्वङ्गरूप वृत्ति-ये दोनों ही जिसके नीच म एक ऊंचा कृपक-स्तम्भ ह । (णाग-सिय-विमल-म्रमिएण) ज्ञानरूपी सफेदवत्र का जिसम पाल तना हुआ है। नौका म एक लकटो का बम लगा रहता है जिस पर एक कपटा नना रहता है। उससे हवा की रुकावट होन से नोका वडे वेग से चलती । यदरूपा यहा वटित कि त गाहे । (सम्मत्त-विमुद्र-लद्ध-णिनामएण ) जिसमे सत्रा ४२-(विद्याणियणिपरपेण) पनि३५ हाना पवनयी रे । नि: ५ (२६) तुरियचरल) तिनी सत्यत वेगवाजी (मवर वेरग्ग तुगमन सुसपत्तेण) ५१२-प्राणानिपानिया निवृत्ति३५ विति तेमा વગગ્ય વિષમાં અનાસક્તિરૂપ વૃત્તિ-એ અને જેના વચમાં એક ઉચે
५२D (णाण-मिग विमल मूसिएण) मान३५. ३६ वरना सभा सद હોય છે વહાણમાં એક લાકડાના થાભલે લાગેલું હોય છે જેના પર એક કપડું (ગઢ) તાણેલું હોય છે તેમાં હવા કટાઈ જાય છે તેથી ભગઈને વહાણ બહુ गया या छ मा १ ३५४ सही गवयु (सम्मत्त-विसुद्व लद्व णिज्जामएण)