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पीयूपपिणो-टीका सू ३२ मसारसागरयर्णनम
३१५ च्छपरिहत्थ-अणिहुयिंदिय-महामगर-तुरिय-चरिय-खोखुसमाणनच्चत-चवल-चंचल-चलंत-घुम्मंत-जल-समूहअरह-सय-विसायमोग-मिच्छत्त-सेल-सकड अणाइसंताण-कम्मबंधण-किलेसगाकर-पग्निनरित-चोक्षुभ्यमाग-नृत्यञ्चपलाचञ्चल-चल-वर्णन-समूहम-अज्ञानान्येव भमन्तो मन्या प्रतिहस्ता जलजन्तुविरोपा, यरिमन् समागसागर स तथा, अनिमृतानिअनुपशान्तानि यानीन्द्रियागि तान्येव महामकरास्तेपा यानि चरितानि गीगाणि वेष्टितानि
चष्टा ते -चोलुभ्यमाण अयन्तमुच्छलन् नृत्यनिय नृत्यन , चपलानचञ्चल यथा ग्यात तथा बस र्गन-विद्युममानवेगन चल्चमाकार भ्रमन जलसमृह, पारपक्षे तु जटसमृहो विनेक जानरनिनाना ममूहो यन स तथा, तत पढदयस्य कर्मपारय , त तादृशम् । 'अरट-भयविसाय-गोग मिच्छत्त-सेल-साड'अरतिभयविशादगोकमि या वगैरसइटम-अरति , भय, विपार गोक , मि-याचम् एतानि प्रतिरोधकतया शैला इवतै मट =अतिविकट , त तादृशम् ,
भणार-सताण-कम्म-बधण-फिलेस-चिरिबल-मुदत्तार' अनादि सन्तान-कर्मपन्धनालेशकममु गन्तरम्-अनादिस तानम् अनादिप्रवाह यकर्मबन्धन तच्च, क्लेगाथ गगाढयस्तल्लमण यत्
सर मार समुद्र मे अजान ही घूमते हुए मस्य एव परिहस्त-जलजन्तुविशेप है। जनुपशान्त डाव्या हा इसम विकराल मगर है । इन इन्द्रियरूप महामझरों के चचल चेष्टाओं से
मम अजानिया का समूहरूप जलसमूह सुध हो रहा है, नाच रहा हे, विद्युद्वेग मे चक्रबत यूम रहा है। (अरट-भय-विसाय सोग-मिच्छत्त-सेल-सकड) अरति अप्रीति, भय-भाति, विपाट, गोक एव मिथ्यात्वरूप पर्वतों से यह ससारसमुद्र अत्यत निकट बना हुआ है। (जणाट सताणकम्मवरणफिलेस-चिक्खिल्ल-सुदुत्तार) अनादिकाल से हम जीव के साथ
भमाण नन्चत चयलचचल-चलन घुम्मत जल समूह) २समारसमुद्रमा मनान જ ઘુમતા માછલા તેમજ પરિહર્તા-જલન તુવિશેપ છે અનુપાત ઈદિ જ એમાં વિકરાળ મગર છે તે ઈદિયરૂપ મહામકની ચ ચળ ચેષ્ટા આથી તેમાં અજ્ઞાનીઓના સમૂહરૂપ જલસમૃહ સુબ્ધ થઈ રહ્યો છે, નાચી २वा, पाणीवेणे यी २हो (अरइ-भय-विमाय-सोग-मि
उत्त-सेल सकड) २०२ति-मप्रीति, लय-नीति, विपाह-४, तेभर भिथ्यात्व ३५ तेथी मा मसारसमुद्र सत्यत विट मने छ (अणाइ-सताणकम्म बधण किलेस चिम्खिल्ल सुदुत्तार) मनाथी म पनी माये पवन