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पीयूपपणी-टोकास ३० प्रायशितभेदवर्णनम्
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गारि ४, विउस्सग्गारि ५, तवारिहे ६, छेदारिहे ७, मूलारिहे ८, अणवट्टप्पारि ९, पारंचियारिहे १० | से तं पायच्छित्ते ।
योग्यम् |3| 'विवेगारिहे' निषेकार्द्धम् विवेक-अनेषगोयभक्तादिपरित्याग, तदर्हम् 18 | 'विसग्गार' युर्गाम्-सर्ग = कायोर्ग, तद्योग्यम् 14/ 'तवारिहे' तपोऽर्रम्-तप =नमस्कारसहितकालादारम्य पण्मासपर्यन्तमनशनम्, तन कस्यापि तपसो योग्य नपोम-अताचार, तद्विशोधकात् प्रायश्चित्तमपि तपोऽर्हमुच्यते इति
'छेदारि' मछेद - दिनपत्रकावारम्य पण्मासपर्यन्त साधुपर्यायस्य न्यून साकरण, तदर्द्धन || 'मूलारिहे' मूलाम्-मूल- पुनर्वतस्योपस्थापनम् - पुनदक्षारोपणम्, तदम् II 'अपार' अनवस्थाप्याऽर्हम्-यस्मिन् आसेपिते कंचन काल व्रतेषु अनवस्थाप्य कृया पश्चात्तपवर्णितया तदोपोपतो व्रतेषु स्थाप्यते तत्रनवस्थाप्यार्हम् । योग्य होता है वह भयार्ट प्रायथित है ३ | (विवेगारिहे) अनेषणीय भक्तादिक का परियाग करना विवेक है, इसके योग्य जो प्रायश्चित्त है वह विवेका प्रायश्चित्त है ४ । (विसग्गारिहे) व्युस का अर्थ कायोर्ग है। इसके योग्य प्रायश्चित्त का नाम व्युसगार्ह प्रायश्चित्त है ५ । (तवारि ) जो प्रायचित्त तपस्या के योग्य होता है वह तपोऽई प्रायश्चित है। यह प्रायचित्त नोकारसी से लेकर छ मास तक होता है ६ । (छेदारि ) साधुपयाय में पाँच दिनसे लेकर उ मास तक की साधुपर्याय की न्यूनता करना हे प्रायधित हैं ७ | ( मूलारिडे) जो प्रायश्चित्त पुन दीक्षा आरोपण के योग्य होता है वह मूलाई प्रायश्चित्त है ८ । ( अणवट्टप्पारिहे ) जिस दोपके सेवन करने पर मयमीजन कुछ काल तक महानतों के विषय में अनवस्थापित अलग कर दिये जाते है, अतिभय, मन्नेने योग्य होय छे ते तडुलयाई आयश्रित छे 3 (विवेगारिहे) અનેષણીય ભાજન આદિને પરિત્યાગ કરવે તે વિવેક છે. તેને ચેાગ્ય જે आयश्चित्त छे ते विवेजई प्रायश्चित्त छे ४. ( विउसग्गारिहे ) व्युत्सर्गी शहना અથૅ કાયૅાત્સગ છે તેને ચેગ્ય પ્રાયશ્ચિત્તનું નામ વ્યુત્સ`હું પ્રાયશ્ચિત્ત છે પ ( तवारिह ) ने प्रायश्चित्त तपभ्याने योज्य होय ते तयोऽडु प्रायश्चित्त छे मा प्रायश्चित्त नोशरसीथी सहने छ भाग सुधी थाय छे. ( छेयारिहे ) સાધુપર્યાયમા પાચ દિવસથી લઈને છ માસ સુધીની સાધુપર્યાયની ન્યૂનતા ४२वी ते हाई आर्याश्रित हे ७ ( मूलारिहे ) ले प्रायश्चित्त इरीने दीक्षा आरोपाने योग्य होय हे ते भूसाई प्रायश्चित्त ८ ( अणनट्टप्पारिहे } દોષનુ મેલન કરવાથી સયમી જન કેટલાક કાળ સુધી મહાનતાના વિષયમાં