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ओपपातिकमत्र' २६, ओवणिहिए २७, परिमियपिडवाइए २८, सुद्धेसणिए '२९, संखादत्तिए ३०। से तं भिक्खायरिया ॥ सू. ३०॥' ।२७। 'परिमियपिंडवाइए' परिमितपिण्डपातिक -परिमितपिण्टस्य - प्रमागोपेनपिण्टस्य पातो लाभ परिमितपिण्डपात , सोऽस्यास्तानि परिमितपिण्डपातिक -आधाकर्मादिदोपरहित भक्तादिकमेकस्माद् गृहायदि पर्याप्त लभ्येत तदा ग्राह्यम्-इत्यभिग्रहवान ।२८। 'मुद्देसणिए' शुद्धैपणिक -शुद्धै पगा-गादिदोषरहितता, शुद्धस्य-उद्गमादिदोषरहितस्य या एपणा, साऽस्याऽस्तीति शुद्धैपणिक , सर्वथा शुद्रमेव माद्यमित्यभिग्रहधाराति भाव ।२९। सग्यादत्तिए' सरयादत्तिक -सर याप्रधाना दत्ति मायादत्ति , तया चरतीति सरयादत्तिक । दवींकटोर कादितोऽविच्छिन्नधारया या भिक्षा पतति सा, तथा-कक्षेपरूपा च भिक्षा दत्तिरित्युच्यते ।३०। 'से त भिक्खायरिया' सैया भिक्षाचया ॥ सू ३० ॥
वाइए ) परिमितपिण्डपातिक-आधाकर्मादिक दोपों से रहित भक्तादिक यदि एक ही गृह से पर्यातमात्रा मे मिल जाय तो हँगा । २९ (सुद्धेसगिए ) शुद्वैपगिफ-शकादिक दोपों से रहित अथवा उद्गमादिक दोपों से वर्जित आहार लेने वाला । ३० (सावादत्तिए). सरयादत्तिक वह है जो इस प्रकार का सकल्प करता है कि दर्वी-कडछी एव कटोग. आदि से अविच्छिन्न धारारूप में जो भिक्षा मेरे पान मे पड जायगी उतना हा निक्षा । ग्रहण करू गा ।(सेत मिक्वायरिया) मिक्षाचर्या के ये ३० भेद है ।। सू० ३०॥
मापशे त श (२८) (परिमियपिंडवाइए) परिभितपि उपाति-माधाકર્મ આદિક દેથી રહિત ભકતાદિક જે એક જ ઘેરથી પુરતા પ્રમાણમાં भणी नय त (२८) (सुद्धसणिए) शुद्धपणि-२४४ मा पोथी सहित मया माहित होपोथी परित साहा२ वा ३० (ससादत्तिए)
ત્તિક તે છે કે જે એવો સંકલ્પ કરે છે કે દેવી-ડી તેમજ કરી આદિથી સતત ધારારૂપમાં જેટલી પણ ભિક્ષા મારા પાત્રમા પડી જશે
की मिक्षा ave (से त भिम्पायरिया) लिहायर्यान२१ 30 लेटर छ (सू ३०)