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पीयूषषिणी टीका रु ३० भिक्षाचर्यातपोषर्णनम २३, भिक्खालाभिए २४, अभिक्खालाभिए २५, अण्णगिलायए स्तस्माद् गृहस्थाद् यो लभ स पृष्टलाभ , सोऽस्याऽनीति पृष्टलाभिक ।२२। 'अपुदुलाभिए' अपृष्टलाभिक केनचिद् गृहस्थैनाऽपृष्टस्यैव साधोर्यस्तस्माद् गृहस्थालाभ सोऽपृष्टलाम , सोऽस्याऽन्तो यपृष्टलाभिक ।२३। 'भिक्मागभिए' भिक्षालाभिक -कस्यचित् क्षेत्राद् गृहादा याचिया गृहस्येन समानीततुटवलच गफकोदवादिकनिष्पादित आहारो भिक्षा, तस्या लामोऽस्यास्तीति मिक्षालाभिक १२४। 'अभिक्खालाभिए' अभिक्षालाभिक -- अयाचितलाभ -अभिक्षा, तस्या लाभोऽम्याऽस्ती यभिक्षालाभिक ।२५। 'अण्णगिलायए' अन्नग्लायक -अन्नेन-आहाग्ग विना ग्लायक , गत्रिनिष्पन्नमन्न ग्रहीयामी ययग्रह कृत्वा मिक्षाचरक इत्यर्थ , पर्युपितानभिक्षाचरक इति भार ।२६।'ओषणिहिए' औपनिहितिकउपनिहित-कथश्चिद् गृहस्थेन स्वसमीपे समानीतमन्नादिकम् , तेन चरति इत्योपनिरितिक महाराज! आप क्या चाहते हैं, तभी लूँगा । २३-(अपुटलाभिए) अष्टाभिक-दाता यदि नहीं पूछेगा तभी लूँगा । २४-(भिक्खालाभिए) भिक्षालाभिक-दाता गृहस्थ बाल चना एव कोढव आदि अन्न को किसी के खेत से अथवा किसी के घर से माग कर लाया होगा उस अन्न से निष्पादित आहारमं से यदि देगा तो लूगा । २५ (अभिक्खालोमिए) अभिक्षालाभिक-दाता माँग कर जो पदार्य नहीं लाया होगा उसमें से देगा तो लूंगा। २६-(अनगिलायए) अन्नग्लायफ-जो अगनादिक रात्रिमें पकाया गया होगा वही लूगा, अर्थात्-पर्युषित अन्न की भिक्षा लेने का अभिग्रह लेनेवाला सयमी जन अन्नग्लायक है। २७ (ओवणिहिए) औपनिहितिक-गृहस्थ अपने समीप में किसी प्रकार से लाया गया अगनादिक में से देगा तो लूँगा । २८-( परिमियपिंड
पृशे भाग | आपने सुन छ त्यारे श (२३) (अपुट्ठलाभिए) मसालि-हता ने नहि पूछ तो १ सश (२४) (भिक्खालाभिए) ભિક્ષાલાભિક-દાતા ગૃહસ્થ જે વાલ ચણા તેમજ કેદરા આદિ અનાજ ઈના ખેતરથી અથવા કેઈને ઘેરથી માગીને લાવ્યા હોય તે અન્નથી બનાવેલા આહાર भाथी मापशे तो श (२५) (अभिस्सालाभिए) मभिक्षासालि-हातामे भाभीने २ पहाथ नही दाव्या डायतमाथी आप तो सध्श (२६) (अन्नगिलायए) અન્નગ્લાયક–જે ભજન રેતમાં રાધેલુ હશે તે જ લઈશ-અર્થાત્ વાગી અન્નની लिमा पानी भलियड ना२ सयभान सन्नसाय छे (२७) (ओवणिहिए) ઓપનિહિતિક-ગૃહસ્થ પિતાની સમીપમાં કોઈ પણ પ્રકારે લાવેલા ભેજનમાથી