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पीयूपवर्षिणो- दीका व १७ प्रवृत्तिव्यापृतस्य कूणिकरामसमीपगमनम् १०५
मुपागत
तदनन्तर- तपश्चात,
से
मूलम् - तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लट्टे समाणे हट्ट तुट्ट-चित्त-माणंदिए -चित्त-माणंदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए टीका- 'तए ण' इयादि तत यल-यदा भगवान् - चम्पानगरीसमीपग्राम - पवित्तिवाउए ' म प्रवृत्तित्र्यापृत = स पूर्वोक्त - भगवद्यार्त्ताऽऽनयन नियुक्त इमीसे कहाए ' अस्था कथाया 'लट्ठे समाणे ' लम्धार्थ सन्-ज्ञातभगवदागमनवृत्तान्त सन्, 'हट्ट तुदु-चित्त-माणदिए ' दृष्ट-तुष्ट-चित्ता-नन्दित - दृष्टतुष्ट अतितुष्टम्, यद्वा दृट - हर्पितम् तुष्टम् प्राप्तसन्तोपतादृश चित्त यस्य स दृष्टतुष्टचित्त, अत एव आनन्दित = आनन्द प्राप्त सजातमानसोल्लास इत्यर्थ । सुने 'चित्तमाणदिए ' इत्यत्र मकार प्राकृतत्वात् । 'पीइमणे ' प्रीतिमना - प्रीति -तृमिर्मनसि यस्य स प्रीतिमना - तृप्तमानस | 'परमसोमण स्सिए ' परमसौमनस्थित - परमम्-उत्कृष्ट च तत् सौमनस्य प्रसन्नचित्तता चेति परमसौमनस्य तदस्य सजात परमसौमनस्थित परमानुरागपूर्णमनस्क
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'तर ण से पवित्तिवाउए ' इत्यादि
( तए ण ) जव भगवान् चपानगरी के समीपवर्ती ग्राम में पधारे तब ( से पत्रित्तिवाउए ) भगवान की वार्ता के लाने के लिये नियुक्त किया हुआ वह पुरुष ( इमीसे कहाए ) इस समाचार को ( लद्धडे समाणे ) जानकर कि भगवान् चपानगरी के समीपवर्ता ग्राम में आकर विराजमान हो चुके है, ( हट्ट तुटुचित्त - माणदिए ) इससे उसके चित्त म अत्यन्त हर्ष और सन्तोष हुआ । अत वह अत्यन्त आनंदित हुआ, ( पीइमणे ) मन मे प्रेम छा गया, (परमसोमणस्सिए) अयत अनुराग से उसका मन भर गया ( हरिस - वस - विसप्पमाण - हियए) अपार
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'तए ण से पवित्तिवाउए' इत्याहि
(तए ण) न्यारे भगवान य पानगरीना सभीपवर्ती गाममा पधार्या त्यारे ( से पवितिनाउए ) भगवाननी वार्ता- समाचार सह वा भाटे निभायेला ते ३ ( इमी से कहाए ) थे सभायारने (लट्टे समाणे ) लएया है लगवान ચ પાનગરીના સમીપવતી ગામમાં આવીને બિરાજમાન થઇ ચૂકયા છે, ( हट्ट तुट्ठ चित्त माणदिए ) साथी तेना भनभा अत्यंत હું અને સતાષ थयो भने तेथी ते महु आनह पाभ्यो, ( पीइमणे ) मनमा प्रेम छवाई गयो, (परम सोमण स्सिए) अत्यंत अनुरागथी तेनु મન ભરાઈ ગયુ