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औपपातिकस
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हरिस-वस- विसप्पमाण-हियए हाए कयवलिकम्मे कय- कोउयमंगल- पायच्छित्ते सुद्धप्पवेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिए अप्प-महग्घा-भरणा-लंकिय- सरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्ख'हरिस-वस-विसप्पमाण- हियए' हर्ष-यश- निसर्प हृदय हर्पवशन विसर्पत्-परित उच्छलद हृदय यस्य स तथा भगवदर्शनादमन्दानन्दतरङ्ग समुच्छलितचित्त इत्यर्थ । " व्हाए ' स्नात - कृतस्नान, ' कयपलिकम्मे ' कृतनलिकर्मा - स्नाने कृते पशुपस्यापर्थं कृतान्नभाग ' कय- कोउय-मंगल-पायच्छित्ते ' कृत-कौतुकमङ्गल- प्रायश्चित्त - कृतानि कौतुकमङ्गलान्येव प्रायश्चित्तानि -दु स्वप्नादिविघातार्थमवश्यकरणीयत्वात् येन स तथा, तत्र कौतुकानि =मपीतिलकादीनि मङ्गलानि तु सिद्धार्थदध्यक्षतादीनि । 'सुद्धप्पवेसाई' शुद्धप्रवेश्यानि - शुद्धानि प्रक्षालितत्वात् निर्मलानि, प्रवेश्यानि राजसभाप्रवेशाऽऽर्हाणि - राजसभायोग्यानि 'मगलाइ ' मङ्गलानि - मङ्गलकारकाणि, 'वत्थाइ' वस्त्राणि - विविधरूपप्रकाराणि – 'पत्रर'-प्रवराणि - मूल्यतो महार्घाणि, रूपत उज्ज्वलानि मृदूनि सान्द्राणि च, प्राकृतत्वाद् निमक्तेर्लोप, 'परिहिए ' परिहित गरारे यथास्थान योजित | 4 'अप्प - महग्घा भरणा-लकियसरीरे ' अल्प-महार्घा भरणा - डलकृत - शरीर - अल्पानि= हर्ष से उसका हृदय उछलने लगा। फिर उसने कोणिक राजा के पास जाने की तैयारी की। उसने ( हाए ) स्नान किया, ( कयवलिकम्मे ) पश्चात् पशुपक्षी आदि के लिये अन्न का विभागरूप बलिकर्म किया, ( कय- कोउय-मगल- पायच्छिते ) दुस्वप्नादि निवारण के लिए मपीतिलकादि किये और दही अक्षतादि धारण किये । (सुद्धप्पवेसाइ मगलाई वत्थाइ पवर परिहिए ) पश्चात् उसने स्वच्छ, राजसभा में जाने योग्य, मागलिक, बहुमूल्य, तथा रूप से उज्ज्वल वस्त्रों को धारण किये । (अप्प - महग्घा - भरणा - लकिय - सरीरे ) वस्त्र पहिर चुकने के अनन्तर फिर उस ( हरिस यस विसप्पमाण हियए) यही तेथे अशिड रामनी पासे , ( कयबलिकम्मे ) पछी पशु जलिर्भ
( कय - कोउय-मगल - पायच्छित्ते ) हु स्वप्नाहि
રણને માટે મષી-તિલક અાદિ કર્યા અને દહી અક્ષત આદિ ધારણ કર્યા (सुद्धप्पवेसाइ मगलाइ बत्याइ पवर परिहिए ) भी तेथे स्वच्छ, शन्टसलाभा પહેરી જવા ચાગ્ય, માલિક, બહુમૂલ્ય તથા રૂપથી ઉજ્જવલ વો ધારણ अर्था (अप्प - महग्घा भरणा लकिय सरीरे) वस्त्र पहेरी सीधा पछी तेरो सोछा
अपार हर्षथी तेनु हृदय भवानी तैयारी जरी पक्षि याहि ने भाटे
तो
छजवा साग्यु
( ण्हाप ) स्नान
અન્નના વિભાગરૂપ होषना - निवा