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पुव्याणुपुत्रि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइजमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए णयरीए वहिया उवणगरग्गामं उवागऍ चंप नगरि पुण्णभदं चेइयं समोसरिउकामे ॥ सू० १६ ॥
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भगवान् श्रीमहावीर, पुत्राणुपुत्र' पूर्वानुपूर्व्या-तीर्थकर परिपाट्या - तीर्थङ्गरपरम्परया । ' चरमाणे ' चरन् - विहरन्, 4 गामाणुग्गाम' ग्रामानुप्रामम् एकस्माद् ग्रामाद् ग्रामान्तरम्, 'दुइज्जमाणे ' द्रवन्- गच्छन् एकस्माद् ग्रामादनन्तर ग्राममनुलधयन्नित्यर्थ, 'सुहसुण ' सुरासुखेन-नयमचाधारहितेन, ' विहरमाणे ' विहरन् - अप्रतिनद्धविहार कुर्वन्, 'चपाए नयरीए ' चम्पाया नगर्या, ' बहिया' बहि 6 उगगरग्गाम ' उपनगरग्रामम् नगरसमीपवर्त्तिन ग्रामम् । उत्रागए ' उपागत -समवमृत, किमर्थमुपागत इत्याह- ' चप गयरिं ' चम्पाया--चम्पानाम्या नगर्यां ' पुण्णभद्द वेश्य समोस रिकामे ' पूर्णभद्र = पूर्णमदनामक चैत्यम् = उद्यान समबसर्तुकाम - आगन्तुकाम सन् उपागत इति सम्बन्ध ॥ सू०१६ ॥
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उत्तीसहजार आर्यिकाओं के परिवार से युक्त भगवान् श्रीमहावीर प्रभु (पुन्त्राणुपुत्रि चरमाणे ) तीर्थंकरों की परपरा के अनुसार विहार करते हुए ( गामाणुग्गामं दूइज्माणे ) एकप्राम से दूसरे ग्राम पधारते हुए ( सुहसुद्देण विहरमाणे ) सुख सुख से विचरते हुए (चपाए णयरीए वहिया उवणगरग्गाम उवागए ) चपानगरी के बाहरभाग की ओर स्थित, परन्तु वहा से बहुत दूर नहीं, किन्तु थोडी दूर पर रहे हुए ऐसे ग्राम में पधारे, यहा आने का कारण उनका यह था कि प्रभु (चप यरिं पुण्णभद चेश्य समोसरिउकामे) चपानगरी के पूर्णभद्र नामक उद्यान में पधारनेवाले थे ॥ सू० १६ ॥
(पुव्याणुपवि चरमाणे ) तीर्थ ४रोनी पर पराने अनुसरीने विहार पुश्ता ४२ता (गामाणुग्गाम दूइज्जमाणे ) ४ ગામથી બીજે ગામ પધારતા ( सुहसुहेण विहरमाणे ) सुभ सुभेयी वियरता ( चपाए जयरीए बहिया उबनगरग्गाम उवागए ) थपा नगरीनी महारना लाग तर परंतु मेनाथी जहु ક્રૂર નહિ પણ જરા દૂર આવેલા એવા ગામમા પધાર્યા અહીં આવવાનુ अरणु तेभने मे हुतु दे ते प्रभु ( चप णयरिं पुण्णभद्द चय समोसरिकामे) ચંપાનાીતા પૂર્ણભદ્ર નામના ઉદ્યાનમાં પધારવાવાળા હતા [સ ૧૬]