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श्रीवीतरागाय नमः
जैनाचार्य - जैनधर्म दिवाकर - पूज्यश्री - घासीलालजीमहाराजविरचितनिकुमुदचन्द्रिका टीकासमलंकृतम् अन्तकृतदशाङ्गसूत्रम् .
(अष्टममङ्गम् )
...मङ्गलाचरणम् -
शुद्धं विशुद्धं शिवदं जिनेन्द्र,
देवेन्द्रवृन्दस्तुतपादपद्मम् ।
अनन्तज्ञानादिधरं मुनीशं,
श्री मोक्षमार्गममाणस्य ॥ १ ॥
अन्तकृतदशाङ्ग सूत्रकी मुनिकुमुदचन्द्रिका - नामक टीकाका हिन्दीभाषानुवाद
मैं घासीलाल मुनि, कल्याण को देने वाले, देवेन्द्रवृन्द से वंदित, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्तवीर्य धारक, शुद्धस्वरूप, शिवपदके दाता, विशुद्धात्मा मुनियों के स्वामी जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार करके ॥ १ ॥ तथा वायुकायादि
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અન્તકૃતદશાંગ સૂત્રની મુનિકુમુદચન્દ્રિકા નામક ટીકાને ગુજરાતીભાષાનુવાદ
हुँ घासीदास भुनि, उद्याने आापवावाजा, देवेन्द्रवृन्हथी पंडित, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्तसुखाने मनन्तवीर्यना धारड, शुद्धस्व३य, शिवयहना भापनार, विशुद्धात्मा भुनियोना स्वाभी मिनेन्द्रलगवानने नमस्कार पुरीने, (१)