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________________ एक भी पुत्र का लालन पालन का आनन्द व लाडकोड नहीं देखा, इस कारण मैं हतभागिनी हूं। मोह मनुष्यका भान भुला देता है। मोहवशरानी आर्तध्यान में बैठी हुई थी उसी समय श्री कृष्ण माताको । चन्दन करने के लिये आये और माताको चिन्तातुर देखकर जो ... मातृभक्ति दिखाई वह सर्व आवाल जनताको अनुकरणीय है। .. माताकी इच्छा पूर्ति के लिये श्रीकृष्णने पौषधशालामें तेला करके हरिणैगमेषि देवकी आराधना करके अपने लघुभ्राताकी याचना की, प्रत्युत्तर में देवने कहा कि तुम्हारे लघुभ्राता होगा परन्तु वह दीक्षित बनेगा यह सुनकर श्री कृष्णने अपनी माताको देववाणी जो सुनाई और तदनुसार गजसुकुमाल कुमारका जन्म हुवा । - एक समय श्री अरिष्टनेमि प्रभुके पधारने पर श्री कृष्ण अपने लघु भ्राताको साथ लेकर वन्दनको जाते हुए रास्तेमें सोमिल ब्राह्मणकी सोमा नामकी कुमारीको देखा, उसकी सुरूपताको कर श्रीकृष्णने अपने लघु भाईके लिये उस कन्याकी याचना कराके भ्रातृप्रेमका आदर्श दिखाया । ....उधर आगे जाकर अरिष्टनेमि भगवानका उपदेश सुनकर गजसुकुमाल कुमार अपने मातापिता व ज्येष्ठ बांधव श्रीकृष्ण की आज्ञा लेकर दीक्षित हुए। दीक्षित होते ही उसी रोज भगवानकी आज्ञा ले महाकाल स्मशानमे जाके ध्यानमें खडे हो गए। वहां, सूर्यास्त होनेके समय यज्ञार्थ शमी आदि लानेके लिये गये हुए सोमिल ब्राह्मण गजसुकुमाल मुनिको ध्यानस्थ देखकर उस बैरको स्मरण करके तलावकी गीली मिट्टीकी पाल सिर पर बांधकर उसमें चिताके प्रज्वलित अंगारे डालकर वहांसे भाग गया। पश्चात् उन प्रज्वलित अंगारोंकी असह्य वेदना होने पर भी वे क्षमाशील मुनि विशुद्ध भावसे उस महान कष्टको सहन करते हुए सर्वकर्मका क्षय किया और अन्तमें केवलज्ञान पाकर मोक्षको प्राप्त हुए। इस प्रकरणमें हमें धर्मशील पुरुषकी अपने कार्यमें तत्परता व सहनशीलता का बोधपाठ मिलता है। .
SR No.009332
Book TitleAntkruddashanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages392
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size24 MB
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