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- गजसुकुमाल मुनिका मोक्ष हो जाने पर दूसरे रोज श्रीकृष्ण श्री अरिष्टनेमि भगवानको वन्दन करनेके लिये गये रास्तेमें एक वृद्ध पुरुषको ईटोंके विशाल ढेरमे से एक ईंट उठाकर धृजते, लथडाते लेजाते हुए देखा, उस पर दयादृष्टि लाकर श्रीकृष्णने हाथी पर बैठे हुए ही उन ईंटोंके ढेरमें से एक ईट उठाकर उसके मकानमे रखदी जिससे उनके साथमें रहे हुए हजारों मनुष्योंने भी वैसाही अनुकरण कर सारा का सारा ईटों का ढेर मकानमें पहुंचा दिया। इस प्रकार इस वृत्तान्तमें अपंगो, गरीबों दुखियों के प्रति करुणा भाव प्रगट करनेके लिये हमको बोधपाठ दिया गया है।
___ इस अध्ययनकी समाप्तिमें श्री कृष्णने जब मोक्ष प्राप्त गजसुकुमाल मुनिको नहीं देखकर श्री अरिष्टनेमि प्रभुसे उनके नहीं दिखाई देने का कारण पूछा तो प्रभुने सारा वृत्तान्त इस प्रकार कह सुनाया कि जिससे श्रीकृष्णको अपने मुंहसे सोमिल का नाम जाननेमें भी नहीं आवे और समय पर श्रीकृष्ण उन्हें जान भी लें। इस प्रकार हर एकको प्रमाणिक सत्य बोलनेका उपदेश इस अध्ययनसे प्राप्त होता है।
इस अध्ययनमें मुनियों की शुद्ध भिक्षाचरी, माताका पुत्रके प्रति और पुत्रका माताके प्रति प्रेम, भ्रातृप्रेम, विशुद्ध क्षान्तिभाव, दुःखियोंके प्रति सहृदयता व भाषासमिति की पालना आदिका वर्णन उचित रूपसे पालन करनेको मिलता है।
इसके आगे नवव अध्ययनमें सुमुखकुमार दसवें अध्ययनमें दुर्मुखकुमार ग्यारहवें में कूपदारककुमार बारवें में दारुककुमार और तेरहवें अध्ययनमें अनादृष्टिकुमारका संक्षिप्तमें वर्णन है । चौथा वर्ग
चोथे वर्ग में जालि मयालि आदि दस कुमारों का संक्षिप्त चरित्र वर्णित है, ये आठों कुमार श्री अरिष्टनेमि भगवान प्रभु के समीपे दीक्षा ले विशुद्ध संयम तपद्वारा कर्मक्षय करके मोक्षको प्राप्त हुए।