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________________ मालूम नहीं देते । हमने जबसे दीक्षा ली तभीसे वेले २ पारणे की तपश्चर्या करनेका अभिग्रह अरिष्टनेमि भगवानके पास लिया । आज हमारे छओ जनों के वेलेका पारणा होने से हम छओ मुनि भगवान की आज्ञा लेकर दो दो मुनि पृथक् २ भिक्षा लेने के लिये निकले तुम्हारे यहां पहले दो मुनि आए वे, तथा पीछे से दो मुनि आए वे, और हम दो सब जुदे २ हैं, हम ही वार २ आए, ऐसा आप न समझें । ऐसा कहकर वे दोनों मुनि चले गए। बादमें देवकी महारानी के हृदय में सन्देह हुआ कि-मुझे बालपनमें अतिमुक्तक मुनिने फरमाया था कि तुम ऐसे आठ पुत्रोंको जन्म दोगी, जिनके समान पुत्रोंको अन्य कोई भी माता जन्म नहीं दे शकेगी, फिरभी मैं प्रत्यक्ष देख रही हैं कि, वैसे पुत्रोंको जन्म देनेवाली अन्य माता भी है। जाऊं मैं श्री अरिष्टनेमि भगवान से अपने हृदयका संशय निवारण करूं। अपने हृद्यमें उत्पन्न संशयका निवारण करना वुद्धिमानका कर्तव्य है, संशय के निवारण किये विना सत्यासत्यका निर्णय नहीं होता। इन्हीं विचारों को लेकर देवकी महारानी भंग- . वानके समीप गई। महारानी वन्दन करके पूछना चाहती है इससे पहेले ही श्री अरिष्टनेमि भगवानने अपने ज्ञान द्वारा महारानी के आनेका कारण जानकर उसी समय फरमाया कि-हे महारानी ! तुम्हें यह विचार हुआ था कि मेरे समान अन्य माता मेरे जैसे पुत्रों को जन्म नहीं देगी। फिर भी मैं प्रत्यक्ष देख रही हूं कि वैसे पुत्रोंको अन्य माताने जन्म दिया हैं, सो अतिमुक्तक कुमारका वचन असत्य हुआ, यह सुनकर देवकी रानी बोली, हां प्रभु ! आप सर्वज्ञ हैं आपसे कोई छुपा हुआ नहीं है। इस प्रकार देवकी महारानी के स्वीकार करने पर अणियसेन आदि छओं अनगारोंका पूर्व वृत्तान्त सुनाकर देवकी महारानी के हृदयको संतुष्ट किया। देवकी महारानीने छओं अनगारों को ये मेरे पुत्र हैं ऐसा भगवान के द्वारा जानकर, उन छओ अनगारों के समीप जाकर वन्दना किया, उस समयका मातृप्रेम का वर्णन अद्वितीय है। पश्चात् देवकी माता अपने घर जाकर विचारने लगी कि,-'मैंने आजतक अपने .
SR No.009332
Book TitleAntkruddashanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages392
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size24 MB
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