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________________ भगवतीपत्रे ६० संगृह्यते, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'नोयमा' हे गौतम! 'किरियाबाई वि' क्रियावादिनोऽपि भवन्ति सलेश्या जीवाः, तथा 'अकिरियाबाई त्रि' अक्रिणवादिनोऽपि भवन्ति, तथा - 'अन्नाणियवाई वि' अज्ञानिकवादिनोऽपि भवन्ति तथा 'वेणइयवाई वि' वैमयिकवादिनोऽपि भवन्ति सलेन्यजीवानां तथा तथा स्वमात्यादिति । 'एव जाव सुकलेस्सा' एवम् सलेश्यजीवरदेव यात् कृष्णलेश्यजीवादारभ्य पद्मलेश्यजीव पर्यन्ताः सर्वेऽपि जीवाः चतुर्विधा अपि भन्दि तथास्वभावत्वादितिभावः । 'अलेस्सा णं भंते ! जीवा पुच्छा' अलेश्या:लेश्वारहिता जीवाः खल भइन्छ ! क्रियावादिनोऽक्रि पावादिनोऽज्ञानिकवादिनो नयवादिनो भवन्तीति प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोया' हे गौतम! 'किरियाबाई' क्रियावादिनोऽलेश्या जीवा भवन्ति अलेश्याः प्रयोगिनः सिद्धार्थ भवन्ति तेचायोगिनः सिद्धार्थ क्रियावादिन एव में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! किरियाबाई वि, अकिरियाबाई वि अन्नागिरवाई वि, वेणइयवाई वि' हे गौतम सलेश्य जीव क्रियावादी भी होते हैं, अकिपाबादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और dafoneादी भी होते हैं । 'एवं जाव सुक्कलेस्सा' सलेश्य जीव के जैसे ही यावत् कृष्णलेश्य जीव से लेकर शुक्लले जीव तक समस्त जीव चारो प्रकार के भी होते हैं। क्योंकि इन जीवो का स्वभाव ही ऐसा होता है । 'अलेस्सा णं भंते ! जीवा पुच्छा' हे भदन्त ! जो जीव यारहित है वे क्या क्रियावादी होते हैं ? या अक्रियावादी होते हैं ? या अज्ञानवादी होते हैं? या वैनयिकवादी होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! किरियाबाई' हे गौतम! अदेश्य जीव क्रियावादी વાદી હાય છે ? અથવા વૈનિયકવાદી હૈાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી गौतमस्वामीने- 'गोयमा ! किरियावाई वि अकिरिया वाईवि अन्नाणियवाई वि. वेणइयवाई वि' डे गौतम ! श्यावाणा को डियावाही पशु હાય છે, અક્રિયાવાદો પણ હાય છે, અજ્ઞાનવાદી પણ હાય છે, અને વૈનविम्वारी पशु होय छे. 'एव' जाव सुक्कलेरघा' सेश्यवाणा भुवनाथन પ્રમાણે જ યાવત્ કૃષ્ણવેસ્યાવાળા જીવથી લઈને શુકલ લેસ્યાવાળા જીવ સુધીના સઘળા જીવા ચારે પ્રકારના પશુ હાય છે કેમ કે આ જીવાના સ્વભાવ જ भेवे। होय छे 'अलेस्साणं भंते! जीवा पुच्छा' हे भगवन् ? बेश्या વિનાના હાય છે, તે શુ ક્રિયાવાદી હાય છે અયવા અક્રિયાવાદ! હાય છે ? અથવા અજ્ઞાનવાદી હાય છે? અથવા વૈયિકવાદી હાય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरभां प्रभुश्रीने हे छे छे - 'गोयमा ! किरियावाई' हे गौतम ! बेश्या
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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