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प्रमेयद्रिका टीका श०३० उ. १ सू० १ जीवानां कर्मबन्धकारणनिरूपणम्
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'मा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौदस ! 'चत्तारि समोसरणा पश्नत्ता' चत्वारि - चतुष्प्रकारकाणि समवसरणानि प्रज्ञप्तानि - कथितानि - इति । 'तं जहा ' तद्यथा 'किरियाबाई' क्रियावादिनः - क्रियाचारित्रपरिपालनात्मककार्यरूपा, साच कर्त्तारः मन्तरेण अनुपपद्यमाना कर्त्तारमाक्षिपन्ती आत्मसमवायिनीति वदन्ति एवं शीळा बाये ते क्रियावादिनः । अथवा क्रियैव प्रधानं न ज्ञानम्, नहि गुडमाधुर्यज्ञान बान् अनुभवति रसनया गुडास्वादम् अतो न ज्ञानं प्रधानम् अपि तु क्रियैव सर्वत्र प्रधाना एतादृश क्रियावादनशीलाः क्रियावादिनः । अथवा क्रियां - जीवादिपदार्थोऽस्तीत्यादिकां वदितुं शीलं येषां ते क्रियावादिनः, ते चात्मास्तित्व प्रतिपत्तिहैं। इस प्रकार से गौतमने यह प्रश्न समवरण के सम्बन्ध में किया है। इसके उत्तर में प्रभुश्री उनसे कहते हैं- 'गोयमा ! चत्तारि समोसरणा पण्णत्ता' हे गौरम | समदरुण चार प्रकार के वहे गये हैं । 'तं जहा 'जैसे कि - 'किरियाबाई' क्रियावादि चरित्रको पालन करने रूप जो प्रकृति है उसका नाम क्रिया है । यह क्रिया कर्ता के बिना होती नहीं है । इसलिये कर्ता रूप आत्माकी सिद्धि इससे होती है । इस प्रकार आत्मा के अस्तित्व को माननेवाले जो हैं वे सब क्रियावादी हैं । अथवा क्रिया ही प्रधान है, ज्ञान नहीं । कहीं गुड की केवल मधुरता का ज्ञानवाला व्यक्ति मात्र जिह्वा से गुडके आरबाद को थोड़े ही जानता है, गुड के आस्वाद को जानने के लिये उसके खाने रूप क्रिया की आवश्यकता होती है । अतः क्रिया ही सर्वत्र प्रधान है ज्ञान नहीं । इस प्रकार से जो क्रिया की प्रधानता माननेवाले हैं वे क्रियावादी हैं । अथवा जीवादि पदार्थों की अस्तित्व रूप क्रिया को माननेवाले जो हैं वे क्रियावादी हैं ।
સમવસરણના સંમ્ ધમાં પ્રશ્ન કરેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ स्वाभीने उडे छे - 'गोयमा । चत्तारि समोरणा पण्णता' हे गौतम! सभवसरषु यार प्रहारना उस छ, 'त जहा' ते या प्रमाणे छे, - - ' किरिया वाई' प्रियावादी, थारित्रने पादान ४२वा ३५ अद्धति छे, तेतु' नाम दिया છે. આ ક્રિયા કર્તા શિવાય થતી નથી, કાઈ ગાળના કેવળ મધુરપણાના જ્ઞાન વાળા પુરૂષ જીભથી ગાળની મીઠાશના સ્વાદ થેાડા જ જાણે છે?ગાળના સ્વાદો જાણવા માટે તેને ખાવારૂપ ક્રિયાની જરૂરત હાય છેજ તેથી ક્રિયા જ સત્ર મુખ્ય છે, જ્ઞાન નહી. આ રીતે જેએ ક્રિયાને જ મુખ્ય માનનારા છે. તેઆ ક્રિયાવાદી કહેવાય છે. અથવા- જીવ વિગેરેના અસ્તિત્વવિદ્યમાનપણાની ક્રિયાને જે માનનારા છે, તે ક્રિયાવાદી કહેવાય છે,