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________________ সমযজন্ধিা হাজ্জা হo৪০ , .৫৭ সমম নিবন্ধিতী নিo ed साख्याः आहारककेवलिसमुद्घातव ः 'उन्नगा तहेच अणुत्तर वियाणवता' उद्वर्तना तथैव-उपपातवदेव अनुत्तरविमानवजिताः एते समना उद्गृत्य अनार विमानेषु नोल्पद्यन्ते तदरिक्तेषु सर्व स्थानेवृत्पद्यन्ते, इति भावः । 'स, पापा जाव णो इणढे सम?' सर्वे प्राणाः यावत् सर्वे सत्वाः अभवसिद्धि संसिपञ्चन्द्रियतया समुत्पन्नपूर्वाः किमिति प्रश्नस्य, नायमर्थः समर्थः, इत्युत्तरम् । 'लेसं जहा कण्हलेस्ससए' शेषम्-उपरि यत् कथितं तदतिरिक्तसई कृष्णलेश्यशन व ज्ञातव्यम्, कियत्पर्यन्तं कृष्णलेश्यशवं ज्ञातव्यं तत्राह-'जाव' इत्यादि, जान अणंतखुतो' यावत् अनन्तकृत्वः एतत्पर्यन्तं सर्वं ज्ञातव्यमिति । 'एवं सोललनु द्घात यहां नहीं होते हैं । 'उन्त्रणा तहेव अणुत्तरचिनाणवज्जा' उद्वर्तना अनुत्तरविमानों को छोडकर उपपात के जैनी ही है । तार कहने का यह है कि ये जब अपने भव से उदृत्त होते हैं तो अनुत्तर विमानों में उत्पन्न नहीं होते हैं। इनके सिवाय और सब स्थानो ये उत्पन्न हो जाते हैं । 'सप्पाणा जाब णो इणटे उमट्टे' हे सदनः । समस्त प्राण यावत् समस्त सत्य अभवलिद्धिक रूप से पहिले उत्पन्न हो चुके हैं ? तो इस प्रश्न के उत्तर में ऐसा कहना चाहिये कि हे गौतम : अर्थ समर्थ नहीं हैं । 'सेस जहा कण्हलेस्ससए' इस प्रकार से जो अपर में कहा गया है उसके अतिरिक्त और सब कथन जे कृष्णलेर त में कहा गया है वैसा ही है । 'जाव अणंतखुत्तो' और वह ' 'यावत् पूर्व में अनन्तवार उत्पन्न नहीं हुए हैं। यहां तकका यहां का गा नथी. उव्वदणा तहेव अणुत्तरविमाणवज्जा' इतना अनुत्तर विभागाने छोडन ઉપપાત પ્રમાણે જ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-તે જ્યારે પિતાના ભવધી ઉદ્વર્તન કરે છે, તે તે અનુત્તરવિમાનમાં ઉત્પન્ન થતા નથી અનુત્તરવિમાન शिवाय या ४ स्थानमा ते! त्पन्न थाय छे 'सबपाणा जाव णो इणने सम?' 8 सावन सघाए। यावत् सपा सत्या शुभमसिद्विपक्षी પહેલાં ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યા છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં એવું કહ્યું છે કે હે गौतम ! ! म ॥३२२ नथी 'सेस जहा कण्हलेस्सस' माशते ६५२ જે પ્રમાણે કથન કરેલ છે, તે સિવાય બાકીનું સઘળું કપન કુલેરી शतभा २ प्रभाथे ४ामा मावत छ, तर प्रभाव समा: 'जाब अणतखुत्तो' मत मा ४थन यात ५७i मनतवार पत्न या छ । કથન સુધીનું કુલેશ્યાના પ્રકરણનું કથન કહ્યું છે તે જ પ્રમાણે કથન કહેવું
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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