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________________ trafer टीका श०४० अ. श. १ कृ. कृ. संज्ञिपञ्चेन्द्रियोत्पात ६२५ संज्ञिपञ्चेन्द्रियाः मोहनीय कर्मम कृतेरुदयिनो भवन्ति, उपशान्तमोहादयस्तु संज्ञिपञ्चेन्द्रिया अनुदयिनो भवन्तीति । ' सेसाणं सत्तण्ड वि उदई नो अनुदई' शेषाणां मोहनीयव्यतिरिक्तानां सर्वेषामपि कर्मणां संज्ञिपञ्चेन्द्रिया उदयिन एव भवन्ति न तु अनुदथिनो भवन्तीति । वेदनोदययोः को भेदः ? इत्याह-वेदकत्वमनुक्रमेणोदीरणाकरणेन च उद्यागतानां कर्मणामनुभवनम् उदयस्तु अनुक्रमागतानां कर्म प्रकृतीना मनुभवनमिति भेद इति । 'नामस्स गोयस्स य उदीरगा नो अणु दीरगा' नाम्नो गोत्रस्य च कर्मणः सर्वे संज्ञिपञ्चेन्द्रिया अपायान्ता उदीरका एव भवन्ति न तु अनुदीरका भवन्तीति । 'सेसाणं छह वि उदीरगा वा अणुदीरगा वा' शेषाणां नामगोत्रजनां पण्णामपि ज्ञानावरणीयादीनां यथासंभवम् उदीरका संपराय गुणस्थान तक के हैं वे तो मोहनीय कर्म के उदयवाले होते हैं और उपशान्त मोहवाले हैं अथवा क्षीणमोहवाले हैं वे मोहनीय कर्म के उदयवाले नहीं होते हैं। 'सेसाण' सत्तण्ह' वि उदई नो अनुदई' मोहकर्म के सिवाय शेष सात कर्मप्रकृतियों के ये उदयवाले ही होते हैं अनुवाले नहीं होते । वेदना और उदय में क्या अन्तर है ? उत्तर - अनुक्रम से अथवा उदीरणा करण से उदय में आये हुए कर्मों का अनुभव करना सो वेदकता है और अनुक्रम से उदय में आये हुए कर्मों का अनुभवन करना वह उदय है । 'नामस्स गोघस्स य उदीरगाणो अणुदीरगा' ये समस्त संज्ञीपञ्चेन्द्रिय जीव नामकर्म के और गोत्र कर्म के क्षीणमोह गुणस्थान तक उदीरक होते हैं अनुदीरक नहीं होते हैं । 'सा' छह वि उदीरणा वा अणुदीरगा वा' पाकी के छह कर्मप्रकृतियों के नामगोत्र को छोड़कर ज्ञानावरणीय आदि ६ कर्मप्रकृतियों के જે સ`ગી પચેન્દ્રિય જીવો સૂમ સૌંપરાય ગુણુ સ્થાન સુધીના છે, તેઓ તે મેહનીય કમ ના ઉદયવાળા હાય છે. અને ઉપશાન્ત માહવાળા હાય છે. તેઓ मोहनीय मना उध्यवाजा होता नथी. 'सेसाणं' सत्तण्ह' वि उदई नो अणुदई ' માહનીય કમ શિવાય ખાડીની સાત કમપ્રકૃતિયાના તેએ ઉદયવાળા જ હાય છે, અનુયવાળા હાતા નથી. વેદન અને ઉદયમા શું અંતર છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-અનુક્રમથી અથવા ઉદીરણા કરણથી ઉદયમાં આવેલા કર્મોના અનુભવ કરવે તે વેદનપણું છે અને અનુકમથી ઉદયમા આવેલા કર્મના अनुभव Łश्व। ते दृय छे 'नामस्स गोयरस य उदीरगा णो अणुदीरगा' मा સઘળા જીવા નામ કના તથા ગેત્ર કર્માંના ક્ષીણુ મેહગુણુ સ્થાન સુધી ઉદ્વીરક
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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