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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ उ.२२०१ प्रथमसमय कृ.कृतयुग्मैकेन्द्रियनि० ५४५ येषां ते प्रथमसमयैकेन्द्रियाः त एव कृतयुग्मकतयुग्मा इति प्रथमसमयकृतयुग्मकृतग्माः ताशाश्चै केन्द्रिया इति 'कभी उववज्जति' कुनः स्थानविशेपा. दागत्य समुत्पद्य-ते किं नैरयिकेम्प आगत्य तिर्यग्भ्यो मनुष्येभ्यो वा देवेभ्यो पा आगत्य समुत्पद्यन्ते ? इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तहेव' तथैव तिरभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते मनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते देवेभ्य उत्पद्यन्ते इति भावः। 'एवं जहेब पढमो उदेसओ' एवं यथैव प्रथमउद्देशकः 'तहेव दूसरे उद्देशे का प्रारभ 'पढमसमय कडजुम्मकडजुम्म एगिदियाणं भंते !' इत्यादि टीकार्थ-'पढमसमय कडजुम्मकडजुम्म एनिदियाणं अते!' हे भदन्त! एकेन्द्रिय रूपसे उत्पत्ति होने में जिनका प्रथम समय है ऐसे वे कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय जीव प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्म राशि. ममित एकेन्द्रिय जीव-'को उपवति' किस स्थान विशेष से आकर के उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यग्योनिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अश्या मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गोयमा! तहेव' हे गौतम ! येति ग्योनिकों में से आकरके भी उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में से भी आकरके उत्पन्न होते हैं और देवों में से भी आकरके उत्पन्न होते है। 'एवं जहेव पढमो उद्देसओ तहेव सोलह खुत्तो वितिओघि भणियव्यो' मी शान। प्रा२'पढमसमय कड़जुन्म कडजुम्मएगिदियाण' भवे । त्यहि साथ-'पढमसमय कडजुम्म कडजुम्मएगिदियाण भंते ! मापन એકેન્દ્રિયપણાથી ઉત્પન્ન થવામાં જેઓને પ્રથમ સમય છે, એવા તે કાયમ કતચમ એકેન્દ્રિય છે અર્થાત્ પ્રથમ સમયમાં ઉત્પન્ન થયેલા કૃતયુગ્મ કાયમ शशिवाजान्द्रिय 'कओ उववज्जति' च्या स्थान विशेषथा भावानापन થાય છે? શું તેઓ નૈરયિકમાંથી આવીને ઉત્પન થાય છે ? અથવા તિર્યંચ નિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્ય માથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે દેવમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભશ્રી शीतभावामान छ -'गोयमा ! तहेव' गौतम तिय योनि માંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે. મનુષ્યમાંથી આવીને પણ ઉત્પન થાય के मन हवामाथा मावी ५५ 8५- थाय छ 'एव जहेव पढमो उडेपओ तहेव सोळसखुत्तो वितियो वि भणियव्वो' गौतम ! समभा भ० ६९
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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