SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 537
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ , प्रमेयबद्रिका ठीका श०३५ उ. १ २०१ राशिक्रमेणैकेन्द्रिजीवनिरूपणम् ५०५ ranीरमाणे दुपज्जवलिए' यः खलु राशि चतुष्केणापहारेणापयिमाणो द्विपर्ययसितो भवति तथा- 'जे णं तरस रासिस्स अवहारसमया कडजुम्मा सेतं कड जुम्म दावरजुम्मे' ये खलु तस्य राशेरपहारसमयाः कृतयुग्मरुता भवन्ति तस्मात् स राशि विशेषः कृतयुग्मद्वापरयुग्म इत्यभिधीयते स च जघन्यवादशात्मक इति (१८) ' जेणं रासी चउकरणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जबसिए' यः खलु राशि चतुष्केणापहारेणापहियमाण एकपर्यवसित एव भवति तथा'जेणं तस्स रासिस्स अवहारसमया कडजुम्मा से त्तं कडजुम्मकलिओगे' ये खलु तस्य राजेरपहारसममया एकपर्यवसिता एव भवन्ति तस्मात् स राशिः कृतयुग्मकल्योज इत्यभिधीयते स च जघन्यत सप्तदशात्मकः ( १७ ) इति ४ । 'चार रूप होते हैं ऐसी वह राशि कृतयुग्म ज्योज कही गई है । वह राशि जघन्य से १९ संख्या रूप होती है 'जे णं रासी चक्कणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जबसिए' जें णं तस्स राखिस्स अवहारसमया कडजुम्मा सेन्तं कलजुम्म दावरजुभ्से' तथा - जो राशि चतुष्क से अपहृन -विभक्त होकर अन्त में दो बचाती है और जिल के अपहार समय चार रूप से होते हैं ऐसी वह राशि कृतयुग्म द्वापरयुग्म रूप है । जघन्त्र से इस राशिका प्रमाण १८ है । अपहार समय की अपेक्षा इस में कृतयुग्मता है और द्रव्य की अपेक्षा अन्त में दो बचने के कारण द्वापरयुग्म है । 'जे णं रासी चउक्कएर्ण अवहारेणं अवहीरमाणे एगज्जबसिए' जो राशि चार से विभक्त होकर अन्त में एक बचाती राशि कृतयुग्म कल्पोज रूप है। तथा इसके अपहारक समय है । 'जेणं तस्रारिस्म अवहारक्षमघा कडजुम्मा सेन्त कडजुम्म कलिओगे' एवं जिस राशिका अपहार लमय एक होना है, वह राशि कृतयुग्म कल्योन रूप है। तथा इसके अपार समय चार होते हैं । इसलिये इम में कृतयुग्मता है ऐसी वह राशि जवन्य से १७ संख्यारूप होती है । 'जे णं रासी चक्कणं अवहारेणं अवहीर अवाय छे. ते राशि धन्यथी १८- योगबुसनी सच्या ३५ थे 'जेण रासो 'चउक्कएण' अवहारेण' अवहीरमाणे दुपज्जवसिए, जेणं तस्स राखिस्स अवहारसमया कडजुम्मा सेत्त' कडजुम्म दावरजुम्मे' तथा ने राशी थारनी सध्याथी अपहार કરતા વહેંચાઇને છેવટે એ વધે છે અને જેના અપદ્ગાર સમય ચાર રૂપ હાય છે. એવી તે રાશિ કૃતયુદ્વાપરયુગ્મ રૂપ હેય છે જઘન્યથી આ ાનું પ્રમાણ ૧ અરાડનુ છે, પહાર સમયેાની અપેક્ષથી આમા કૃતયુગ્મ પણુ કહેલ છે, अने छेवटे मे अथवाने द्वापरयुग्भयो, 'जेणं' राम्री चक्करणं अवहारेण अवहीरमाणे एगज्जवथिए' ने राशी यारथी वहेथवाथी हेवटे मे वर्षे छे 'जेणं' तस्स रासिस्छ अवहारसमया सेत्तं कडजुम्म कलिओगे' भने ने राशीना આપડાર સમય એક હાય તે રાશિ કૃતયુગ્મ કલ્યાજ રૂપ છે, અને તેના भ० ६४
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy