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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०३४ अ. श.१ ४०४ सामान्येन उत्पत्तिनिरूपणम् ३७३ प्रविष्टो भवति, तृतीयसमये अर्व गतः चतुर्थनमये अनुश्रेयां गत्वा पूर्णदिदिशि उत्पधेत इति । 'से तेणटेणं जाव उववज्जेज्मा' तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते त्रिसामयिकेन वा, चतुः सामयिकेन वा, दिग्रहेण उत्पद्येत इति, ‘एवं एज्जत्तमुहुम पुढवी काइयत्ताए वि' एवं यथा अपर्याप्त सुक्षनपृथिवीकाधिकस्य अधोलोव क्षेत्रनाडया वाह्य देशे समवहतस्य ऊधलोकक्षेत्रनाडया वाह्ये देशे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिकायिकतयोत्पादो दर्शितः तथैव तस्यैव तथाविधर य पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवी. कायिकतया समुत्पद्यमानस्य त्रिसामयिकेन वा, चतुःसामयिकेन वा विग्रहेण उत्पादो ज्ञातव्यः । एवं जाव पज्जत मुहुम ते उकाइयत्ताए' एवं यावत् पर्याप्त अथवा उत्तरदिशा में जाता है और दूसरे समय में सनाडी में प्रविष्ट होता है और तृतीय समय में यह उर्व गमन करता है और चौथे समय में वह अनुश्रेणि में जाकरके पूर्वादि दिशा में उत्पन्न हो जाता है। 'खे लेणवेणं जाव उववज्जेज्जा' इसलिए, हे गौतम! मैंने ऐसा कही है कि वह लीनसमयवाले अथवा चार समयकाले विग्रह से उत्पन्न होता है। ‘एवं पज्जत्त सुहमपुढवीकाइयत्ताए वि' जिस प्रकार से अबोलोक क्षेत्र स्थित बसानाडी के बाहिर के प्रदेश में मारणान्तिक समुदघात करके परे हुए अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकाधिक जीव का अ. लोक क्षेत्रस्थित वलनाडी के वाह्य प्रदेश में अपर्याप्तक सक्षमप्रथिवी कायिक रूप से उत्पाद प्रकट किया गया है उसी प्रकार ले पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक रूपले उत्तान्न होने के योग्य हुए उसका तीनसमयवाले विग्रह से अथवा चारसमयवाले विग्रहले उत्पाद पहना चाहिये । 'एवं દિશામાં અથવા ઉત્તર દિશામાં જાય છે, અને બીજા સમયમાં ત્રસ નાડીમાં પ્રવેશ કરે છે. અને ત્રીજા સમયમાં ઉર્ધ્વગમન કરે છે અને ચોથા સમયમાં त विश्रेशीमा sn पूर्व हिशमां पन्न IS Mय छ 'से तेणट्रेणं जाव उववज्जेज्जा' त ४२५ थी 8 गौतम । भे थे ४७८ छ ?-ते त्रय समय पाणी अथ३॥ या२ समयवाणी विड गतिथी जपन्न थाय एवं पञ्जचसुहुम पुढवीकाइयत्ताए वि' के प्रमाणे अधाना क्षेत्रमा २७८ स नाडीन। બહારના પ્રદેશોમાં મારણતિક સમુઘાત કરીને મરણ પામેલા અપર્યાપ્ત સૂમ પૃથ્વીકાયિક જીવને ઉર્થક્ષેત્રમાં રહેલા કસ નાડીની બહારના પ્રદેશમાં અપર્યાપ્તક સૂમ પ્રકાયિકપણાથી ઉપપાત બતાવેલ છે એજ પ્રમાણે પર્યાપ્ત સૂમ વૃશ્વિક વિકપણાથી ઉન થવાને ચગ્ય થયેલા તેઓ ઉપાદ ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી અથવા ચાર સમયવાળી વિવાહ शतिया डे न . 'एवं जाव पज्जत्तसुइमतेउकाइयत्ताए' मान
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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