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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० उ.१ सू०४ जीवानां भवसिद्धिकत्वादिनि० ११९
मूलम्-किरियावाई णं भंते ! जीवा किं भवसिद्धिया . अभवसिद्धिया ? गोयमा ! भवालाद्धया नो अभवसिद्धिया। . अकिरियावाई गं भंते ! जीवा किं भवसिद्धिया पुच्छा गोयमा! भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि। एव अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि।सलेस्लाणं भंते! जीवा किारयावाई किं भवासद्धिया पुच्छा, गोयमा ! भवासद्धिया नो अभवसिद्धिया । लेस्लाणं भंते ! जीवा आकरियावाई ? किं भवालद्धिया पुच्छा गोयमा! भवासाद्वया वि असवालद्धिगा वि । एवं अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि जहा सलस्सा। एवं जाव सुकलेस्ला । अलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावाई किं भवसिद्धिया पुच्छा गायमा! भवसिद्धिया नो अभसिद्धिया । एवं एएणं अभिलावेणं कण्हपक्खिया तिसु वि समोसरणेसु भयणाए। सुकपक्खिया चउंसु वि समोसरणेसु भवसिद्धिया नो अभवासद्धिया। सम्मदिट्टी, जहा अलेस्सा। मिच्छादिट्टी जहा कण्हपक्खिया। सम्मामिच्छादिदी दोसु वि समोसरणेसु जहा अलेस्सा । नाणी जाव केवलनाणी भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया। अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। सन्नासु चउसु वि जहा सलेस्सा, नो सन्नोवउत्ता जहा सम्मदिट्टी, सवेयगा जाव नपुं: सगवेयगा जहा सलेस्सा । अवेदगा जहा सम्म हिट्ठी, सकसाई जाव लोभकसाई जहा सलेस्सा अकसाई जहा सम्मदिट्ठीसजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा, अजोगी जहा सम्मदिट्टी, सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता जहा सलेस्सा। एवं नेर-- इया वि भाणियव्वा । नवरं नायव्वं जं अत्थि। एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा पुढवीकाझ्या लवटाणेसु वि