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प्रमैयच्चान्द्रका टीका श०३० उ.१ ०३ नै० आयुष्ककर्मबन्धनिरूपणम् ११५ नारकातिरिक्तं प्रकुर्वन्तीति । 'कण्णपक्खिया तिहिं समोसरणेहि' कृष्णपाक्षिका जीवाः पञ्चेन्द्रियतियग्योनिकाः त्रिभिः समवसरणैः अक्रियावाद्यज्ञानिकवादि चैनयिकवादिमिः पक्षः 'चउबिहंपि आउयं पकरेंति' चतुर्विधमपि नारकदेव तिर्यग्मनुष्यायुष्क कुर्वन्तीति । 'मुकपक्खिया जहा सलेस्सा' समवसरणत्रयवन्तः शुक्लपाक्षिका यथा सलेश्याः सलेश्यतिर्यपञ्चेन्द्रियजीववदेव शुक्लपाक्षिका अपि पञ्चेन्द्रियतियग्योनिका आयुश्चतुष्क कुर्वन्ति तथा क्रियावादि शुक्लपाक्षिक तिर्यक् पञ्चेन्द्रियाः केदलं वैमानिकदेवायुष्कमेव बध्नन्ति 'सम्मदिट्टी जहा मण. पज्जवनाणी तहेव येमाणियाउयं षकरें ति' सम्यग्दृष्टयः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका जीवा मनःपर्यवज्ञानिवदेव केवलं वैमानिकायुष्कमेव प्रकुर्वन्तीति ! 'मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपक्खिया' पिथयादृष्टयो यथा कृष्णपाक्षिकाः कृष्णपाक्षिकजीववदेव मिथ्यादृष्टि जीवा अपि अक्रियावाद्यज्ञानिकवादि चैनयिकवादिमि त्रिभिः समव'कण्हपक्खिया तिहिं समोसरणेहिं कृष्णपाक्षिक पञ्चेन्द्रिय तिर्थग्योनिक जीव अक्रियावादी, अज्ञानवादी और वैनयिकवादी ही होते हैं और उस समय 'चलम्विहं पि आउयं पकरें ति' वे चारों प्रकार की आयुका बन्ध करते हैं। 'सुक्कपक्खिया जहा सलेस्ला' तीन समवसरणवाले शुक्लपाक्षिक पञ्चेन्द्रियतिथच लश्य तिर्यश्चपंचेन्द्रिय जीवों के जैसे देव तिर्यक् मनुष्य और नारक चारों आयुओं का वध करते हैं, और क्रियावादी शुक्लपाक्षिक तिर्थक् पंचेन्द्रिय जीव मात्र वैमानिक देवायु का वन्ध करते हैं। सम्मदिट्ठी जहा सणपज्जवनाणी तहेव वेमाणिया उयं पकरेंति' सम्यग्दृष्टि पञ्चन्द्रिय नियंग्योनिक जीव मनः पर्यवज्ञानी के जैसे केवल एक वैमानिक आयुका बन्ध करते है। 'मिच्छादिष्ट्री जहा काहपक्खिया' स्विथ्याइष्टि जीव कृष्णपाक्षिक जीवों के जैसे म २ छ, परतु ना२४ना मायुना ५ ४२ता नयी 'कण्हपक्खिया तिहि समोसरणेहि' पाक्षिा ५न्यन्द्रिय तिय ययानि स्यारे भठियावाही, मानवाही भने नयिवाही डोय छे, त्यारे 'चउहि पि आउय पकरे'ति' तसा यार प्रारना भायुना मध ४२ छे. 'सुक्कपक्जिया जहा सलेस्सा' शुसाक्षि: ५'येन्द्रिय तिय य यावा वोना थन माग દેવ, તિય ચ, અને મનુષ્ય આ ત્રણ પ્રકારના રમાયુષ્યને બંધ કરે છે નરયિક मायुनो ५५ ४२ता नथी सम्मदिट्ठी जहा मणपज्जवनाणी तहेव माणियाउय' पकरे ति' अभ्यष्टि ५न्द्रिय तिय ययानि wal, मन:पवज्ञानामा
वाना ४थन प्रभावण २४ वैमानि मायुना मध ४२ छ, 'मिच्छा विद्वी जहा कण्हपक्खिया' मिथ्याष्टा वाना थन प्रभावित