SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्र सरणे देवनारकतिर्यग्मनुष्यायुष्क चतुर्विधमपि प्रकुर्वन्तीति । 'सम्मामिच्छादिही ण य एक पि पकरेंति जहेव नेरइया' सम्पमिथ्यादृष्टयो न चैकमपि आयुष्क प्रकुर्वन्ति यथैव नैरयिकाः मिथ्यादृष्टिनारकवदेव एपामपि आयुष्कवन्धो न भवतीत्यर्थः । 'नाणी जाव ओहिनाणी सम्मादिही' ज्ञानिनो यावत् अवधिज्ञानि नो. यथा सम्यग्दृष्टयः सम्पदृष्टिवदेव शानिनो मत्यादिज्ञानिनोऽवधिज्ञानिनश्च केवलं वैमानिकदेवायुष्कमेव प्रकुर्वन्ति न तु नारकतिर्यग्मनुष्यायुष्कं प्रकुर्वन्तीति । 'अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा काहपक्खिया' अज्ञानिनो यावद्विभङ्गज्ञानिनो यथा कृष्णपाक्षिकाः यावत्पदेन मत्यज्ञानि श्रुताज्ञानिनोः संग्रहः तथा चाज्ञानिमत्यज्ञानि-श्रुताज्ञानि-विभङ्गज्ञानिनश्च कृष्ण पाक्षिकवदेव त्रिमिः समवसरणैरक्रियावाद्यज्ञानिकवादि-वैनयिकवादिरूपै चतुर्विधमपि आयुष्क प्रकुर्वन्तीति । 'सेसा पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अक्रियावादी, अज्ञानवादी और वैनथिकवादी अवस्था में, चारों प्रकार की आयुका घन्ध करते हैं। 'सम्मामिच्छादिवीण य एक्कंपि पकरेंति जहेव नेरच्या लग्यक् मिथ्यादृष्टि मिश्रदृष्टि-जीव नारक के जैसे एक भी आयुष्क कर्म का वन्ध नहीं करता है। 'नाणीजाव ओहिनाणी जहा सम्मादिट्ठी' ज्ञानी यावत् अपधिज्ञानी सम्यग्दृष्टि के जैसे केवल एक वैमानिक देवायुष्क का ही बन्ध करते हैं। नारक तिर्यश्च एवं मनुष्य आयुओं का बन्ध नहीं करते हैं । 'अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा काहपक्खिया' अज्ञानी यावत् विभंगज्ञानी कृष्ण पाक्षिक के जैसे अक्रियावादी, अज्ञानवादी, और वैनयिकवादी अवस्था में चारों प्रकार की आयुको वन्ध करते है । यहां यावत् शब्द से प्रत्यज्ञानी और अताजानी इन दोक्षा ग्रहण तुला है। लेसा जाव अणाપંચેન્દ્રિય તિર્યંચ અક્રિયાવાદી અગાનવાદી અને વૈનાયિકવાદી અવસ્થામાં ચારે घाना सायुज्यनी ५५ ४२ , 'सम्मामिच्छादिट्ठीण य एवं प पकरें ति' जहेव नेरइया' सभ्य मिथ्या दृष्टियाणा नाना ४थन प्रभार भिटिवाणा से १६ मायुष्य भने। '५ ४२॥ नथी. 'नाणी जाव ओहिनाणी जहा सम्मादिट्ठी' જ્ઞાનીયાવત્ અવધિજ્ઞાની સમ્યગૃષ્ટિવાળા જીવન કથન પ્રમાણે કેવળ એક દેવ આયુષ્યને જ બંધ કરે છે. નારક, તિર્યંચ અને મનુષ્ય સંબંધી યુને બંધ કરતા નથી. 'अन्नाणि जाव विभगनाणी जहा कण्हपक्खिया' अज्ञानी यावत् વિભાગજ્ઞાનવાળા કૃષ્ણપાક્ષિકના કથન પ્રમાણે અક્રિયાવાદી, અજ્ઞાનવાદી, અને નયિકવાદી અવસ્થામાં ચારે પ્રકારની આયુને બંધ કરે છે. અહિયાં યાવત પદથી મતિજ્ઞાની અને શ્રતઅજ્ઞાની આ બે ગ્રહણ કરાયા છે.
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy