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भगवती सूत्रे वानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'नो नेरइयाउयं०' नो नैरयिकायुकम् अक्रियावादिनो नारकाः प्रकुर्वन्ति 'तिरिक्खजोणियाउयं पकरे 'वि' तिर्यग्योनिका युष्कं कुर्वन्ति 'मणुस्साउयं विपकरेति' मनुष्यायुष्कमपि प्रकुन्ति 'नो देवाउयं पकरें 'ति' नो देवायुष्कं मकुर्वन्ति । 'एवं अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि' एवम् - अक्रियावादि नारकवदेव अज्ञानिकवादिवैनयिकवादिनारका अपि न नारकदेवायुकं प्रकुर्वन्ति किन्तु तिर्यग्मनुष्यायुष्कं प्रकुर्वन्ति इमे त्रयोsक्रियावादिनः तिर्यग्मनुष्यायुषामेव कर्त्तारो भवन्ति न तु नारकदेवायुप बन्धका भवन्तीति भावः । 'सलेस्सा णं भंते ! नेरइया किरियावाई' सलेश्याः खलु या देवायुका बन्ध करते हैं? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गोयमा ! नो नेरइयाउय, हे गौतम! अक्रियावादी नैरथिक नैरधिकायुष्क का यन्ध नहीं करते हैं 'नो देवाउय पकरेंति' देवायुष्क का धन्ध नहीं करते हैं, किन्तु' तिरिक्खजोनिया उयं पकरेति, मणुस्तायं पिपक'ति' तिर्थमायुष्क का बन्ध करते हैं और मनुष्यायुष्क का भी बन्ध करते हैं । 'एवं अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि' इसी प्रकार से अज्ञानिकवादी नैरचिक और वैनयिकवादी नैरथिक भी न नारकायु को बन्ध करते हैं और न देवायुका ही बन्ध करते हैं किन्तु 'तिरिक्खाउयं पकरेति मणुस्सायं पि पकरेंति' तिर्यगायु का बन्ध करते हैं और मनुष्यायु का भी धन्य करते हैं । इस प्रकार ये अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी नारक तिर्यग्मनुष्य आयुक्का ही पन्ध करने वाले होते हैं, नारक देवायुका नहीं' | 'सलेस्सा णं भंते । नेरइया
अनुश्री छे - 'गोयमा ! नो नेरइयाउय' हे गौतम! अट्ठियावाही नैरयिष्ठ नैरयिना आयुष्यना गंध उरता नथी नो देवाउय पकरेति' हेव समधी आयुष्यना मध कुरता नथी. परंतु 'तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति मणुस्सा उय' पकरे 'ति' तिर्यय आयुष्यना गंध ४रे छे, मने मनुष्य आयुध ४२ छे. 'एव अन्नाणियवाई विवेणइयवाई वि' ४ प्रमाये अज्ञानवाही नैरयि मने વૃનિયકવાદી નૈરિયેકા પણુ નારક આયુના બંધ કરતા નથી અને દેવ આયુને अणु गंध उश्ता नथी परंतु तेथे 'तिरिक्खाउय' पकरेति मणुस्साउयं पिपकरे ति' તિય ચ આયુષ્યને ખંધ કરે છે, અને મનુષ્ય આયુને પણ ખધ કરે છે. આ રીતે આ અક્રિયાવાદી, અજ્ઞાનવાદી અને વૈનયિકવાદી નારકા તિયચ અને મનુષ્યના આયુને જ ખ ધ કરવાવાળા હાય છે નારક અને દેવ આયુને ધ કરવાવાળા હાતા નથી.
'स्वाणं भवे ! नेरइया किरियावाई' हे भगवन् ने नैरथि है। बेश्या -