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________________ प्रमैयन्द्रिका टीका श०३० उ०१ सू०३ नै० आयुष्ककर्मबन्धनिरूपणम् १०१ 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो नेरइयाउयं०' नो नैव नैरयिकायुष्क कुन्ति 'नो तिरिक्ख०' नो तिर्यग्योनिकायुष्क प्रकुर्वन्ति 'मणुस्साउयं पकरेंति' मनुष्यायुष्कं प्रकुर्वन्ति 'नो देवाउयं पकरें ति' नो-नैव देवायुष्क प्रकुर्वन्ति क्रियावादिनो नारका यद्देवायु रकायु ने प्रकुर्वन्ति तत् नारकभवस्वभावादेव यच्च तिर्यगायु ने बध्नन्ति तत् क्रियावादस्वभावात् , केवलं मनुष्यायुरेव वनन्ति तथा स्वाभावादिति । 'अकिरियावाई णं भंते ! नेरइया पुच्छा' अक्रियावादिनः खलु भदन्त ! नैरयिकाः किं नारकायुः प्रकुर्वन्ति यद्वा तिर्यगायुः प्रकुर्वन्ति अथवा मनुष्यायुः प्रकुर्वन्ति यद्वा देवायुः भकुर्वन्तीति प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते । भगकरते हैं ? या देवायुष्क का बन्ध करते हैं ? गौतमस्वामी के इस प्रश्न के उत्तरमें प्रभुश्री कहते हैं 'गोयमा बोनेरयाउयं०, नोतिरिक्ख०' क्रिया. वादी नैरथिक नैरयिक आयुका बन्ध नहीं करते हैं, तिर्थ गायुष्क का बन्ध नहीं करते हैं किन्तु-'मणुहताज्यं पारेति' मनुष्यायु का बन्ध करते हैं। 'नो देवाउयं पकालि' देगयुको भी वे बन्ध नहीं करते हैं ! क्रियावादी नैरयिक जो नैरयिकायु का और देवायुका बन्ध नहीं करते हैं उसमें कारण नारकभव का स्वभाव ही है। तथा जो लियंगायुका वे षन्ध नहीं करते हैं इसमें कारण उनकी क्रियावादिता का स्वभाव है। केवल वे मनुष्यायुका ही बन्ध करते है-क्यों कि इस स्थिति में इसी आय के बांधने का उनका स्वभाव हो जाता है । 'अफिरियावाई गं भंते ! नेरइया पुच्छा' हे भदन्त ! अक्रियावादी भैरथिक क्या गैरकायुका बन्ध करते हैं ? या तिर्थगायु का चना करते हैं ? या मनुष्यायुका बन्ध करते है ? અથવા દેવ આયુષ્યને બંધ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે है-'गोयमा ! नो नेरइयाउ० नो तिरिक्ख०' यही यि नायिक આયુષ્યનો બંધ કરતાં નથી તથા તિર્યંચ આયુષ્યને પણ બંધ કરતા नथी परतु 'मणुस्वायं परेति' मनुष्य समधी आयुश्यना म अरे छे 'नो देवाउय पकरेंति' ते व समाधी मायुध्यन ५५ કરતા નથી તેનું કારણ નારક ભવને તે પ્રકારને સ્વભાવ જ છે. તથા જે તિય ચાયને તેઓ બંધ કરતા નથી તેનું કારણ તેઓના કિયાવાદી પણાને સ્વભાવ જ છે તેઓ કેવળ મનુષ્ય આયુને જે બધ કરે છે. કેમ કે-આ સ્થિતિમાં मेरा भायुष्य माधवानी तमना वसा IS Mय छे. 'अकिरियावाई णं भंते ! नेरइया पुच्छा' है मगन् मठियावाही नयि। शुयि मायुनी मध કરે છે? અથવા તિય"ચ આયુષ્યને બંધ કરે છે? અથવા મનુષ્ય આયુષ્ય ને બંધ કરે છે? અથવા દેવ આયુષ્યને બંધ કરે છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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