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________________ भगवती उक्कोसेण चित्तं' स्थितिर्जयन्येन अन्तर्मुहर्तम् उत्कर्षेणाऽपि मेह पूर्वगमत्रये जयन्येन स्थिति रन्तर्मुहनेभागा कविता, उत्कर्षो द्वादशसंवत्सरप्रमाणेति इह तु जयन्योत्कृष्टाभ्यामृमाभ्यामपि अन्तर्मु भवत्येव स्थित वैलक्षण्यमिति ५ । 'अझवसाणा असत्या' असाया अमशस्ताः पूर्वमध्यवसायानां प्रशस्ता प्रशस्तत्वम् उयरूपत्वमुक्तम् इह तु अपशम्नमात्रमेवेति भवत्येव पूर्वपेक्षया वैलक्षण्यमिति । 'अनुबंधो जहा दिई यथास्थितिः यथा स्थितिर्जयत्कृभ्यामन्तर्मुहुर्तममाणा कथिता तथानुबन्धोऽपि जघन्योस्कुष्टाभ्याम् अन्तर्मुहुर्तमात्र पत्र भवति पूर्वपकरणे अनुज काः उत्कृष्टतो द्वादशसंवत्सररूपः, छह तु उमाभ्यामपि एक एव इति भवत्येव “पैलक्षण्यमिति ७ । 'संवेदो तहेव आदिल्लेग दोन गमप' संवेधस्तथैव प्रापयोः लिये कहा है ४ स्थितिद्वार में 'टिई जहनेणं अंनो कोमे वि अंतमुत्त' स्थिति यहाँ जघन्य से अन्तर्मुहूर्त की होती है और उत्कृष्ट से भी एक अन्तर्मुहूर्त की होती है । पूर्व के तीन गम में जवन्य से स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से १२ वर्ष की कही गई है, पर यहां जघन्य और उत्कृष्ट दोनों से ही वह एक अन्तर्मुहूर्त की ही कही गई है, 'अज्झमाणा असत्या' पूर्व के तीन में मास्न और अप्रशस्त दोनों प्रकार के अध्यवसाय कहे गये हैं, पर यहां पर वे अप्रशस्त ही कहे गये है । 'अणुबंधो जहा ठिई' अनुबन्ध भी स्थिति के अनुसार होने के कारण और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहर्त्त प्रमाण ही है, पूर्व के तीन गम में अनुबन्ध जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण और त्कृष्ट से १२ वर्ष प्रमाण कहा गया है 'संवेहो नहेव आदिल्लेख दोस्र 'ठिई जहणं अतोमुहुत्त उक्कोसेण वि अतोमुहुत्तं' गाडियां स्थिति धन्यथी અતર્મુહૂર્તની હાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ એક અંતર્મુહૂતની હે ય છે. પહેલા ગમમાં સ્થિતિ જઘ યથી એક અંતર્મુહૂતની અને ઉત્કૃષ્ટથી ૧૨ બાર વર્ષની કહી છે. પરંતુ અહિયાં જધય અને ઉત્કૃષ્ટ અને પ્રકારથી તે એક तमुहूर्तनी ही छे, 'अज्झत्रसाणा अप्पसस्था' पडेलाना त्रयुगभोमां प्रशस्त અને અપ્રશસ્ત અને પ્રકારના અધ્યવસાય-આત્મપરણામ કહેલ છે પણ अडियां अप्रशस्त अध्यवसाय ? हे छे. 'अणुबंधो जहा ठिई' अनुसंधनु થન પણ સ્થિતિના થન પ્રમાણે હેાવાથી જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અત મુહૂત પ્રમાણુને છે. પહેલાના ત્રણ ગમેામાં અનુષધ જઘન્યથી એક અંતभुहूर्त प्रभाणुवाको भने उत्कृष्टथी १२ और वर्ष प्रभानो छे. 'संवेहो आदिल्लेसु दोसु गमपसु' जीन त्रीडना पडेझाना मे गभेोभां डायस वेध
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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