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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२४ ३.१२ सू०३ द्वीन्द्रियेभ्यः पृ. नामुत्पत्तिनिरूपणम् ७७ मेव नघन्यस्थितिकत्वेन ज्ञानद्वयासंभवादिति ३ । 'णो सणजोगी णो वयजोगी' नो मनोयोगिनो नो वचोयोगिना, जयन्पस्थितिकत्वेन अपर्याप्तकत्वात् तेषां न मनोयोगः न वाग्योगः संभवति, पूर्वगनगमत्रये तु अजघन्यस्थितिकस्याऽपि संभवेन मनोयोगवाग्योगयो विधानं कृतम् अनो भवत्येव योगद्वारे पूर्वगमत्रयापेक्षया इहबैलक्षण्यम् । 'काययोगी' काययोगिनः शरीरस्य सर्वजीवसाधारणतया जघन्यस्थितिकत्वेऽपि काययोगस्य संमवादिवि ४ । स्थितिद्वारे 'ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत दो अज्ञान नियम से होते हैं। पूर्व के तीन गम में दो अज्ञान और दो ज्ञान इनका विधान किया गया है तय कि यहां केवल दो अज्ञानों का ही विधान किया गया है क्योंकि ये जघन्य स्थितिवाले होने से दो ज्ञानों की संभावना नहीं होती है, 'णो मण जोगी नो वयजोगी' योगद्वार में यहां केवल काययोग होता है, मनो. योग और वचनयोग नहीं होता है, क्योंकि जघन्य स्थितिवाला होने से अपर्याप्त होने के कारण उनके न मनोयोग और न वचनयोग होता है। पूर्व के तीन गम में मनोयोग वचनयोग का होना भी कहा गया है। क्योंकि वहां अजघन्य स्थितिवाले का भी सद्भाव है पर यहां जघन्य स्थितिवाले होने से अपर्याप्तावस्था में वचनयोग का सदभाव नहीं कहा गया है, यही यहां पूर्व की अपेक्षा अन्तर है। 'कायजोगी, वे काययोगी होते हैं, जघन्य स्थितिवाला होने पर भी यहां काययोग का सदभाव कहा गया है वह शरीर सर्व जीव साधारण होता है इस અજ્ઞાન અને શ્રી અજ્ઞાન એ બે અજ્ઞાન નિયમથી થાય છે. પૂર્વના ત્રણ ગામમાં બે જ્ઞાન, અને બે અજ્ઞાન કહેલ છે. અહિયાં કેવળ અજ્ઞાનનાનું જ विधान छे. __णो मणजोगी' योगाभां महियां 4 यया जाय छे. भना. યેગ અને વચનગ થતું નથી કેમકે–પૃથ્વીકાયમાં ઉત્પન્ન થવાવાળા બે ઈદ્રિય જ મનેગવાળા હોવાને કારણે તેઓને વચન એગ પણ હોતે નથી. પહેલા ગામમાં વચનગ લેવાનું પણ કહેવામાં આવ્યું છે. કેમકે-ત્યાં ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળાને પણ સદ્દભાવ છે. પરંતુ અહિયાં જઘન્ય સ્થિતિવાળા હેવાથી અપર્યાપ્ત અવસ્થામાં વચનગને સદ્ભાવ કહ્યો નથી. જઘન્ય સ્થિતિવાળા હોવા છતાં પણ અહિયાં જે કાગને સદ્ભાવ કહ્યો છે, તે શરીર સર્વ જીવ સાધારણ હોય છે, તેથી કહેલ છે. ૪ સ્થિતિદ્વારમાં