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________________ ७६ भगवतीसत्रे प्रमाणा शरीरावगाहना । पूर्वगमत्रये तु द्वादशयोजनममाणाऽपि कथितेति १ । तथा 'णो सम्मदिट्टी' नो सम्यग्दृष्टयः जघन्यस्थितिकतया सास्वादनसम्यग्दृष्टे स्पादात् प्रथमगमत्रये तु सम्यग्र दृष्टिरपि कथितः, उत्कृष्टस्थितिकस्यापि तेषु संभवात् अतो दृष्टिद्वारे भत्रति वैलक्षण्यमिति । 'मिच्छादिट्टी' मिथ्यादृष्टयः, 'णो सम्मामिच्छादिट्ठी' नो सम्यग् मिध्यादृष्टयः, पूर्वगमत्रये सम्यग्दृष्टित्वस्य मिथ्यादृष्टिस्य च विधानं कृतम् मिश्रदृष्टित्वस्य निषेधः कृतः इह तु सम्यग्दृष्टित्वस्य मिश्रदृष्टित्वस्य निराकरणम् मिथ्यादृष्टित्वस्य विधानं जघन्यस्थितिकत्वात् इति २ | तथा 'दो अन्नागा नियमं ' द्वे अज्ञाने सत्यज्ञानश्रुताज्ञाने नियमतो भवतः । पूर्वमज्ञानद्वयं तथा ज्ञानद्वयमपि कथितम् इह तु अज्ञानद्वयमात्र है, पूर्व के तीन गम में यह अवगाहना १२ योजन प्रमाण है, यह सभ्यदृष्टि और मिश्रदृष्टि होता नहीं है, क्योंकि जघन्य स्थितिवाला होने से इसमें सास्वादन सम्यग्दृष्टि का उत्पाद नहीं होता है, प्रथम तीन गमों में तो सम्यग्दृष्टि भी होता है क्योंकि उनमें उत्कृष्ट स्थितिवालों का भी संभव है यही यहां अन्तर है, 'नो सम्मामिच्छादिट्ठी' सम्यग्मिथ्यादृष्टि अर्थात् मिश्रदृष्टिवाले नहीं होते हैं। 'मिच्छादिट्ठी' ये मिथ्यादृष्टि होते हैं। पूर्व के तीन गमों में सम्यग्दृष्टि का और मिथ्यादृष्टि का इन दो दृष्टियों का विधान किया गया है, और मिश्रदृष्टियों का निषेध किया गया है, परन्तु यहां पर मिथ्यादृष्टि के विधान के साथ सम्यग्दृष्टि और मिश्रदृष्टि इन दोनों का भी निषेध किया गया है, मिथ्यादृष्टिता का विधान इस के जघन्य स्थितिवाला होने के कारण हुआ है । 'दो अन्नाणा नियमं' यहां मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान ये ત્રણ ગમેામાં આ અવગાહના ૧૨ માર ચાજત પ્રમાણની કહી છે. તેઓ સમ્યષ્ટિ કૈં મિશ્ર દૃષ્ટિવાળા હાતા નથી. કેમકે-જઘન્ય સ્થિતિવાળા હાવાથી તેમાં સાસ્વાદન સભ્યષ્ટિના ઉત્પાદ થતા નથી. પહેલા ત્રણ ગમેામાં તે સમ્યક્ દૃષ્ટિવાળા પણુ હાય છે, કેમકે-ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા એ ઇદ્રિામાં સાસ્વાદન સમ્યગ્ દૃષ્ટિના ઉત્પાદ થાય છે. તેથી આ મિથ્યાદષ્ટિ વાળા કહ્યા છે. પહેલાના ત્રણ ગમેામાં તેઓમાં સમ્યગ્ દૃષ્ટિપણાનું અને મિથ્યાર્દષ્ટિ પણાનુ આ બન્ને દૃષ્ટિયાનું વિધાન કરેલ છે, અને મિશ્ર દૃષ્ટિના નિષેધ કહેલ છે. પણ અહિયાં મિથ્યા દૃષ્ટિના વિધાનની સાથે મિશ્રર્દષ્ટિ અને સમ્યગ્ દૃષ્ટિ આ બન્નેને નિષેધ કરેલ છે. મિથ્યાદૃષ્ટિ પણાનુ' વિધાન અને જઘન્ય स्थितिवाजा होवाने अर थयेस छे. 'दा अन्नाणा नियम' मडियां भति L
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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