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भगवतीस्से दावरजुम्मे नो कृतयुग्मो नो योजा नो द्वापरयुग्मः । किन्तु-'कलिओगे' कल्योजः, धर्मास्तिकायस्यैकत्वात्-चतुष्कापहाराऽभावे नैकस्यैवावस्थानात्, फल्योज रूप एवाऽसौ धर्मास्तिकायो भवति । न तु-कृतयुग्मादिरूप इति । एवं अधम्मत्थिकाएं वि' एवम्-धर्मास्तिकायवदेव अधर्मास्तिकायोऽपि कल्योज एवं भवति । एतस्याऽपि एकत्वेन चतुष्कापहाराऽभावान कृतयुग्मादिरूपतेति । ___ 'एवं आगासत्यिकार वि' एवमाकाशास्तिकायोऽपि एतस्यापि-एकत्वेन चतु. बकापहाराऽभावात् न कृतयुग्मादिरूपता, अपितु कल्योजरूपतैवेति भावः, . . है अथवा कल्योजरूप है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा नो कडजुम्मे, नो तेप्रोए, नो दावरजुम्मे हे गौतम! द्रव्यरूप से धर्मास्तिकाय न कृतयुग्मरूप है, न योजरूप है न द्वापरयुग्मरूप है परन्तु यह कल्योजरूप है, क्योंकि धर्मास्तिकाय को द्रव्यरूप से एक ही कहा गया है । इसलिये, इसमें से चार का अपहार होना असंभव है। अतः उसके अपहार की असंभवता से यह एक संख्यारूप से स्थित रहने के कारण कल्योज रूप ही है । कृतयुग्मादिरूप नहीं है । 'एवं अधम्प्रस्थिकाए वि' धर्मास्तिकाय के जैसा ही अधर्मास्तिकाय भी द्रव्य की अपेक्षा से एक द्रव्यरूप होने से कल्योज रूप ही है। चतुष्क के अपहार के असंभव से यह कृतयुग्मादि रूप नहीं है। । 'एवं आगासस्थिकाए वि' इसी प्रकार से आकाशास्तिकाय भी चतुष्क के अपहार की असंभवता को लेकर द्रव्य की अपेक्षा से कृत. युग्मादिरूप नहीं है किन्तु यह कल्योजरूप ही है। स्वाभीना प्रश्नना उत्तरमा प्रमुश्री 8 छ -'गोयमा ! नो फडजुम्मे नो तेओए, नो दावरजुम्मे' हे गौतम द्रव्यपाधी पारिताय कृतयुम ३५ नथी. વ્યાજ રૂપ નથી. દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ નથી, પરંતુ તે કલ્યોજ રૂ૫ છે. કેમકે ધર્માસ્તિકાયને દ્રવ્યપણાથી એકજ કહેલ છે. તેથી તેમાંથી ચાર ચારને અપહાર થવાનું અસંભવિત છે તેથી તેના અપહારના અસંભવપાથી એ એક સંખ્યા ३५थी राना ४.२ ४क्ष्या ३५४ छ, तयुभ विगैरे ३५ नथा. 'एवं अधम्मत्थिकाए वि' मास्तिआय प्रमाणे मास्तिोय ५९ द्रव्यपाथी દ્રવ્ય રૂપ હોવાથી કજ રૂપજ છે. ચારના અપહારના અસ ભવપણાથી આ કૃતયુમાદિ રૂપ નથી.
"एवं आगासत्यिकाए वि' मा प्रमाणे माशाय ५ यार याना અપહારના અસંભવપણાથી દ્રવ્યની અપેક્ષાએ કૃતયુગ્માદિ રૂપ નથી. પરંતુ કાજ રૂપ જ છે. તેમ સમજવું.