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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ३ सू०८ नैरयिकादीनामल्पबहुत्वनिरूपणम् ७२५ पुरुषभेदात् द्वेषा, सिद्धिर्गविश्वेत्यष्टौ । एतेषामल्पबहुत्वञ्चैवमर्थतो भवति - 'नारी १ नर २ नेरइया तिरित्थि ४ सुर ५ देवी ६ सिद्ध ७ तिरिया य ८ । यो असंखगुणा चउ, संखगुणा पंतगुणा दोन्नि - ॥१॥
नार्यो १ नरा २ नैरधिकार स्तिर्यत्रियः ४ सुरा ५ देव्य ६ सिद्धाः ७ स्विर्यश्वश्र८ । 1 स्वोका असंख्यगुणाश्चत्वारः, संख्यगुणा अनन्तगुणौ द्वौ ॥ १ ॥
सर्वस्वोका नार्यः, १ 'असंखगुणा च' इति, नारीशब्दादनन्तरं ये चत्वारःनर-नैरयिकतिर्यक् स्त्रीयः सुर-रूपाश्चत्वारस्ते उत्तरोत्तरमसंख्यातगुणा विज्ञेयास्तथाहि ताभ्यो नारीभ्यो नरा असंख्यातगुणाः, २ तेभ्यो नैरयिका असंख्यात' पद में कहे अनुसार जानना चाहिये । आठ गतियां इस प्रकार से हैं- १ नरकगति तथा तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, अमरगति, नरामर तिर्यञ्चों में स्त्री पुरुष के भेद से दो दो प्रकार की और सिद्धगति - इस प्रकार ये आठ गतियां हैं। नरकगति में केवल एक नपुंसक वेद ही होता है इसलिये इसका विशिष्ट भेद नहीं किया गया हैं । तिर्यञ्चगति में, नरगति में और देव गति में स्त्रीवेद और पुरुषवेद दोनों होते हैं इसलिये इन्हें स्त्री पुरुष के भेद से विशिष्ट किया गया है सिद्धों में कोई वेद नहीं हैं, इसलिये उसे भी भेद विशिष्ट नहीं किया गया है । यही बात - नारी, नर, नेरइया' इत्यादि । इस गाथा द्वारा प्रकट की गई है। इसके द्वारा यह समझाया गया है कि मनुष्य स्त्रियां सब से कम हैं। 'असंखेज्जगुणा चउ' नारी के आगे के चारपद नर नैरथिक तिर्यक् स्त्री और देव ये चार एक एक से असंरूपातगुणे कहे गये हैं जैसे- नारी - मनुष्य स्त्री की अपेक्षा मनुष्य असं
સમજવુ જોઈએ. આઠ ગતિયે આ પ્રમાણે છે ૧ નરકગતિ, ૨ તિય ચગતિ. उ नरगति भनुष्यगति ४ अभरगति, ५-६-७, नराभर तिर्ययमां स्त्रीयुषना ભેદથી બબ્બે પ્રકારની ગતિ, અને સિદ્ધોની ગતિ આ પ્રમાણે આઠ ગતિયા છે, નરકગતિમાં કેવળ એક નપું સક વેદ જ થાય છે. તેથી તેના વિશેષ ભેદ કહેલ નથી તિય ચ ગતિમાં, નરગતિમાં, અને દેવગતિમાં સ્ત્રી વેદ અને પુરૂષ વેદ ડાય છે. તેથી તેઓને સ્રીપુરૂષના ભેદવાળા કહ્યા છે સિદ્ધોમાં કઈ વેદ્ય હાતા नथी. तेथी तेने वेदवाना उद्या नथी. भेट वात 'नारी, नर नेरइया' त्याहि ગાથાદ્વારા પ્રગટ કરેલ છે. આ ગાથાથી એ સમઝાવ્યુ' છે ફૈ-મનુષ્ય સ્ત્રિયા સૌથી माछी होय छे. 'भसंखेज्जगुणा चर' नारी राष्हनी पडेताना यार भेटते है-नर નારયિક તિચ' સ્ત્રી અને દેવ આ ચારે એક એકથી અસંખ્યાતગણુા કહ્યા ४. प्रेम-नारी-मनुष्य स्त्री ४रतां मनुष्यो असण्यातगाया छे. तेनाथी सध्यात