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प्रमेयचन्द्रिका टोकाश०२५ उ. ३ ०७ प्रकारान्तरेण श्रेणीस्वरूपनिरूपणम् ७१३
हे गौतम ! 'अणु से गई पवत्त-नो विसेटिं गई पवत्त ' अनुश्रेणि श्रेणिमंजु सृत्य गतिः प्रवर्त्तते - परमाण्वादीनाम् नो विश्रेणि गतिः प्रवर्त्तते श्रेणिमनुसृत्यैव परमाणुपुद्गलानामित्यर्थः । 'दुष्परसियाणं भंते! वाणं' द्विपदेशिकानों भदन्त ! स्कन्धानाम् द्वौ प्रदेशौ भवयवतया विद्येने येषां ते द्विपदेशिकाः, द्वि देशिकाव से स्कन्धा अवयविन इति द्विपदेशिकाः स्कन्धा स्तेषां द्विपदेशिक स्केन्धानां किम् 'अगुसेढि गई पचत्तर - विसेदिं गई पत्रच - विगता सेढि इति' अनुश्रेणि गतिः प्रवर्त्तते त्रिश्रेणि गतिः प्रवर्त्तते इति प्रश्नः ? उत्तरमाह-' एवं चैत्र १ इत्यादि, 'एवं चेव' एवमेत्र - यथा- परमाणुपुद्गलानाम् तथैव - द्विपदेशिक स्कन्धानाचेत्र' मपि अनुश्रेणि श्रेणिमनु य यथा भवेत् तथैव-गतिः प्रवर्तते, न तु विश्रेणि श्रेणी
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इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोमा ! अणुसेढि गई पवतर, नो विलेट गई पवत्तई' हे गौतम ! परमाणु आदिकों की जो गति होती है वह ण के अनुसार ही होती है। श्रेणि के बिना नहीं होती हैं । अब पुनः श्री गौतमस्वामी प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं- 'दुप्पएसिया भंते ! खंधाणं अणुसेढि गई पवत्तह, विसेदिं गई पचस' हे भदन्त ! जो छिप्रदेशिक स्कन्ध हैं उनकी गति श्रेणि के अनुसार होती है अथवा श्रेणि के अनुसार नहीं होती है-विश्रेणि से होती है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'एवं चेव' हे गौतम | जैसा परमाणुपुङ्गलों की गति के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही कथन द्विप्रदेशिक स्कन्धों की गति के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये । अर्थात् द्विप्रदेशिक स्कन्धों की जो लोकान्त प्राविणी गति होती है वह श्रेणि के अनुसार ही होती है। उडेछे - 'गोयमा ! अणुसेढि गई पवत्तइ, नो विसेढि गई पत्त' ગૌતમ ! પરમાણુ વિગેરેની જે ગતિ હાય છે, તે શ્રેણી અનુસાર જ હાય છે. શ્રેણી વિના હાતી નથી.
हवे श्रीगौतमस्वाभी अनुश्रीने खेवु छे छे है- 'दुप्पएसिया णं भंते ! खंधाणं अणुसेढि गई पवत्तइ, विसेढि गई पवत्तइ' हे भगवन् मे प्रदेशवाणा ने સ્પધા છે, તેની ગતિ શ્રેણી પ્રમાણે જ હાય છે? અથવા શ્રેષ્ઠી અનુસાર નથી હાતી ? એટલે કે વિશ્રેણી થી હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ શ્રી ગૌતમ स्वाभीने उडे छे है- ' एवं चेव' हे गौतम परमाणु युद्धसोनी गतिना સંબધમાં જે પ્રમાણે કહ્યું છે. એજ પ્રમાણેનુ કથન એ પ્રદેશવાળા "ધાની ગતિના સમધમાં પણું સમજવું.. બે પ્રદેશવાળા સ્કંધાની લેાકાન્તને પ્રાપ્ત કરવાની જે ગતી રશ્રેણી પ્રમાણે જ
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