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________________ redies प्राचीतीच्यायताः श्रेय इति । ' दाहिणुत्तराययाश्रवि' दक्षिणोत्तरायता अपि श्रेणयः स्यात् - कृतयुग्माः नो व्योजाः स्याद् - द्वापरयुग्माः नो कल्योजा इति । 'उडुमंहाययाओ णं भंते । पुच्छा ?' कध आयताः खलु पृच्छा ? हे भदन्त ! ऊर्ध्वऽघ आयता लोकाकाशश्रेणय. प्रदेशार्थतया कृतयुग्माः योजाः द्वापरयुग्माः कल्योजा वेति प्रश्न : ? भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोमा' हे गौतम ! 'कड जुम्माओ' कृतयुग्माः ऊर्धामायताः श्रेणयः । 'नो तेओयाओ' नो व्योजाः, 'नो दावर जुम्माओ - नो कलिभोगाओ' नो द्वापरयुग्माः नो कल्योजाः- ताः श्रेगयो भवन्ति इति । ऊर्ध्वाध आयताः श्रेणयः प्रदेशार्थया केवलं कृतयुग्नाः न तु. ज्योजादिप्रदेशरूपा भवन्तीति । अत्रेयं संग्रहगाथा - ७०४ कदाचित वे द्वापरयुग्मरूप हैं, पर कल्पोजरूप नहीं हैं। 'दाहिणुतराय याओ वि' इसी प्रकार से दक्षिण से उत्तर तक जो लम्बी लोकाकाश प्रदेश पक्तिरूप श्रेणियां हैं वे भी कदाचित् कृतयुग्मरूप हैं पर योज रूप नहीं हैं, दाचित् वे द्वापयुग्मरूप हैं पर कल्पोजरूर नहीं हैं । 'उड्डू महायगाओ णं पुच्छ ।' हे भदन्त ! ऊर्ध्व अधः आयत जो लोकाकाश श्रेणियां हैं वे प्रदेशरूप से क्या कृनयुग्मरूप हैं ? अथवा ज्यो जरूप हैं ? अथवा द्वापरयुग्मरूर हैं ? अथवा कल्यो जरून हैं ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' कडजुम्माओ, नो ते भोपाओ, नो दावरजुम्माओ, नो कलिभोगाओ' हे गौतम! ऊर्व अवः आयत जो लोकाकाश श्रेणियां हैं वे प्रदेशरूप से सिर्फ कृतयुग्मरूप हैं जोजरूप नहीं है द्वापरयुग्रूप नहीं हैं और न कल्पोवरूप ही हैं । यहां यह होय छे, परंतु यो ३५ होती नथी, 'दाहिणुत्तराययाओ वि' मे४ रीते દક્ષિણથી ઉત્તર સુધીની લાંખી લેકાકાશ પ્રદેશની ૫ક્તિ રૂપ જે શ્રેણિયેા છે, તે પશુ કાઈ વાર કૃતયુગ્મ રૂપ હાય છે, પરંતુ ત્યેાજરૂપ હાતી નથી. તે કંઈ વાર દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે પરંતુ કલ્યાજ રૂપ હોતી નથી. ‘દૃઢ महाययाओ णं पुच्हा' हे भगवन् उपर नीचे सांगी सोडाअश प्रदेशनी के શ્રેણિયેા છે, તે પ્રદેશપણાથી શુ' કૃતયુગ્મ રૂપ છે ? અથવા ધેાજ રૂપ છે ? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે ? અથવા કલ્ચાજ રૂપ છે ? ગૌતમ સ્વામીના આ प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री छे - 'गोयमा । कडजुम्माओ, नो तेओयाओ नो दावरजुम्माओ तो कलि ओगाओ' हे गौतम । उपर नीचे सांजी से अअश પ્રદેશની જે શ્રેણિયા છે, તે પ્રદેશપણાથી કેવળ મૃતયુગ્મ રૂપ છે. યેાજરૂપ નથી. દ્વાપરયુગ્મ રૂપ નથી તેમ કલ્યાજ રૂપ પણ નથી, આ સબંધમાં આ પ્રમાણેની સંગ્રહ ગાથા છે –
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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