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'प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सु०६ श्रेण्या' सादित्वादिनिरूपणम् ७०५
'तिरियायया उ कडवावराओ लोगस्स संखऽसंखा वा'
सेहीओ कडजुम्मा, उड़महे आययमसंखा' ॥१॥ छाया-सियंगायताः कृतद्वापराः लोकस्य सख्याता असंख्याता वा ।
श्रेणयः कृतयुग्मा अधि आयता असंख्याताः ॥१॥ इति । '. 'अलोगागास सेढीभो णं भते ! पएसट्टयाए पुन्छ। ?' अलोकाकाशश्रेणयः खलु भदन्त ! पदेशार्थतया कृतयुग्माः योजाः द्वापरयुग्माः कल्योजावेति प्रश्नः ? भगवानाह-'योगा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय कडजुम्मायो जाव सिय कलिभोनाओ' स्यात्-कृतयुग्ना यावत् स्यात् कल्योजाः याः श्रेणयः भुल्लकसंग्रह गाया-तिरियायचा उ फडशवरायो' इत्यादि । तात्पर्य करने का यही है कि लोक को तिर्यगायन श्रेणि जो कि संख्यात प्रदेशोंवाली अश्रवा असंख्यात प्रदेशों वाली हैं वे कृतयुग्म अधया द्वापरयुग्मरूप हैं और जो ऊध आयत है वे असंख्यालप्रदेशी ही होती है और मात्र कृतयुग्मरूप ही हैं। ___ अप श्रीगौलारस्वामीप्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं-'अलोगागालखेढीओ 'णं भंते! पएलहयाए पुच्छा' हे भदन्त ! अलोकाकाश की जो श्रेणियां के प्रदेशरूप से कृतयुग्मरूप है ? अथषा योजरूप है अथवा छापरयुग्मरूप हैं ? अदा कल्पोजरूप है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं'गोयला! लिप काडजुस्माओ, जाच लिय कलि ओगाओ' हे गौतम ! अलोशाफाश की जो श्रेणियाँ हैं-वे प्रदेश रूप से कितनीक तो कायरमरूप है कितनीक योजरूप हैं कितनीक द्वापरयुग्मरूप * और शिलनीक कल्पोजरूप है। इनमें जो श्रेणियां क्षुल्लक.
विरियायया उ कडबावराओ' त्याहि उवानु ता५य से छे ४-४नीતિર્યગાયતશ્રેણી કે જે સંખ્યાત પ્રદેશેવાળી અથવા અસ ખ્યાતપ્રદેશવાળી છે તે બધી કૃતયુગ્મ અથવા દ્વાપરયુગ્મરૂપ છે અને ઉદર્વ અને અધ ભાગની જે આયત શ્રેણિયે છે તે બધી અસ ખ્યાત પ્રદેશોવાળી જ હોય છે. અને કેવળ કૃતયુગ્મરૂપ જ છે.
वे श्रीगीतमस्वामी प्रभुश्रीन सेवु ५छे छे :-'अलोगागाससेढीओ णं भते ! पएसट्याए पुच्छा' मापन म शनी २ श्रेलिया छे, ते प्रदेशपाथी शतसम्म ३५ ? अथवा या ३५ छ ? अथवा द्वापरयुम ३५१ અથવા કલ્યાજ રૂપ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમદવામીને કહે છે
-गोयमा ! सिय कडजुम्नामो जाव सियं कलिश्रोगाओ' गौतम ! Aist. કાશની જે એવિ છે, તે પ્રદેશપણાથી કેટલીક કૃતયુગ્મ રૂપ છે, કેટલીક જ
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