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________________ प्रमेयन्द्रिका टीका श०२५ उ ३ सू०३ प्रदेशतोऽवगाहतश्च संस्थाननि० ६४३ खलु यत् तत् प्रतरायतम् तत् द्विविधं प्रज्ञप्तम् 'तं जहा ओयपएसिए य जुम्म पएर्सिए य' तद्यथा--भोजप्रदेशिक युग्मप्रदेशिक च । 'तत्य णं जे से ओयपए. सिए' . तत्र खलु यत् तद् ओजपदेशिकम् ‘से जहन्नेणं पन्नरसपएसिए पन्नरसपएसोगाढे' तद् जघन्येन पञ्चदशपदेशिक पञ्चपदेशावगाढा अस्य स्थापना चैत्रम् 'उकोसेणं अगंतपएसिए तहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तप्रदेशिक तथैव अस. ००० ख्यात प्रदेशावगाढ मित्यर्थः । 'तत्य ण जे से जुम्मपएसिए से जह °° न्ने छपएसिए छप्पएसोगाढे' तत्र खलु यत् तत् युग्ममदेशिक आ.नं. १६ घनायतम् उत् जघन्येन पट्शनदेशक पहन देशावगाढं च भवतीति पन्नत्ते' उनमें जो प्रतरोयत है यह दो प्रकार को कहा गया है 'तं जहा' जैसे-'ओयएसिए य जुम्मपए लिए थ' ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदे. शिक 'तत्य णं जे से ओयपरसिए' इनमें जो ओजप्रदेशिक प्रतर आयत है वह 'जहन्नेणं पन्नरलपएहिए पन्नरसपएसोगाढे' जघन्य से १५ पंद्रह प्रदेशोचाला होता है और आकाश के १५ पंद्रह प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है। इसका आकार सं. टीका में आ० नं. १६ से दिया है। 'उकोसेणं अणंतपएलिए तहेव' तथा उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशोंवाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशो में यह अवगाढ होता है। 'तस्थणजे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं छप्पएसिए छप्पएसोगाढे तथा जो उनमें युग्मप्रदेशिक घनायत है वह जघन्य ले छ प्रदेशों वाला होता है और आकाश के ६ छह प्रदेशों में उसका अवगाह रहता है यह छ प्रदेशी प्रतर के ऊपर दूसरा छ प्रदेशी प्रतर की स्थापना करने से द्वादश तभा २ प्रतायत संस्थान छे, ते मे प्रा२नु छे. 'तं जहा ते भा प्रभारी छ.-'ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य' मा प्रदेशवाणु भने युभ प्रहे शवायु प्रत२ संस्थान 'तत्थ णं जे से ओयपएसिए' तभा २ मा प्रशिपायु प्रतर मायत संस्थान, छ, त 'जहण्णेणं पन्नरसपएसिए पन्नरसपएसोगाढे' જઘન્યથી ૧૫ પદર પ્રદેશવાળું હોય છે, અને આકાશના પંદર પ્રદેશમાં તેને અવગાઢ હોય છે, એજ પ્રદેશવાળા પ્રતર આયતસંસ્થાનને આકાર सीमा मान.१६ थी मतावे छे. 'उकोसेणं अणतपएसिए तहेव' તથા ઉત્કૃષ્ટથી તે અનંત પ્રદેશાવાળું હોય છે, અને આકાશના सामन्यात प्रशामा असावाणु डाय छे. 'तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं': छप्पएसिए 'छप्पएसोगाढे' तथा '' तमा २ युमप्रशोवाणु ઘનાયત સંસ્થાને છે, તે જઘન્યથી છ પ્રદેશોવાળું હોય છે, અને આકાશના
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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