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________________ भगवतीसत्रे - ६४२ O O 'से जहन्ने पिसिए तिपरसोगाढे' तद ओजमदेशिक श्रेण्यायतं . जघन्येन त्रिदेशिक त्रिप्रदेशावगाद च अस्य च स्थापनेत्रम् आ.नं. १४ 'कोसे असि तं चैव' उत्कर्षेणाऽनन्तमदेशिकं तथा तदेव असंख्यात 'प्रदेशावगाढ़' चेत्यर्थः । ' तत्थ णं जे से जुम्बपरसिए से जहन्नेणं दुपए लिए दुपएंसोगाढे पम्न्नत्ते' तत्र खल यत् तत् युग्मम देशिकं श्रेण्याय तम् तत् जघन्येन द्विपदेशिकं द्विपदेशादगाढं च तच्चैव युग्मम देशिक - द्विप्रदेशिकम् 'rathi aauric aहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तमदेशिक तथैव असे आ. नं. १५ ख्यात प्रदेशावगाढं चेत्पर्थः, 'तत्थ णं जे से पथराय से दुविहे पन्नत्ते' रात्र ० सिए' इनमें जो ओजप्रदेशिक आयत है वह 'जहन्नेणं तिपएसिए ति एसोगाढे' जघन्य से तीन प्रदेशों वाला होता है और तीन आकाशे प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है । इसका आकार से टोकामें आ. नं. १४ से दिया है । 'उकोसेणं अनंतपएलिए तं चेत्र' यह ओजप्रदेशिक श्रेण्यात उत्कृष्ट से अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है । 'तत्थ णं जे से जुम्मएसए से जहनेणं दुपए लिए दुपएलोगाडे' उनमें जो युग्मप्रदेशिक श्रेण्याय होता है वह जघन्य से दो प्रदेशों वाला होता है और आकाश के दो प्रदेशों में अवगाढ होता है । इसका आकार सं. टीकामें आ० नं. १५ से दिया है । तथा यह 'उक्को सेगं तपसिए तहेव' उत्कृष्ट से वह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशो में अवगाह होता है । 'तत्य णं जे से पयरायए से दुबिहे प्रदेशवाणु भायत संस्थान छे ते 'जहन्नेण तिपएसिए तिपएसोगाढे' धन्यथ ત્રણ પ્રદેશેાવ છુ હોય છે. અને ત્રણ આકાશ પ્રદેશેામાં તેના અવગાઢ હોય છે. तेनारस टीममां मा न १४ थी सतावेस छे 'नको रेणं अनंत एसिए तचेव' या ो।४ प्रदेशवाणु श्रेश्यात सस्थान उत्सृष्टथी संनतप्रदेशीवाणु होय छे. मने आशना यस यात प्रदेशमां तेना अवगार होय हे 'तत्य णं जे से जुम्मपरसिए से जहन्नेणं दुपए लिए दुपए सोगादे' भने तेमां ने युग्भ प्रदेशવાળુ આયત સંસ્થાન હોય છે, તે જઘન્યથી એ આકાશ પ્રદેશવાળુ હાય છે અને આકાશના કે પ્રદેશેામાં તેને અવગાઢ હોય છે. તેના આકાર सौं दीष्ठाभां आ. न. १५थी मनावेस छे, तथा आउकोसेणं अणतपप सिंप तहेव' उत्सृष्टथी ते अनंत अहेशोवांणु होय छे भने आशना असंच्यात अद्देशोभां तेना अवगाढ होय छे. 'तत्थ णं जे से पथराय से दुबिहे पन्नत्ते'
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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