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________________ ५०८ भगवती एपैव-अच्युतदेववक्तव्यता ज्ञातव्येति । अच्युतदेवापेक्षया संहनने वैलक्षण्यं तदर्शयति-'नवर इत्यादि । 'नवरं दो संघयणा' नव द्वे संहनने-वज्रऋषमनाराच-ऋषभनाराचरूपे । अच्युतदेवेषु संहननत्रयवन्त उत्पद्यन्ते इह तु माथमिक: संहननद्वयवन्त एव उत्पद्यन्ते इति-वैळक्षण्यमिति 'ठिई सवेहं च जागेमा' ग्रेवेयक देवानां स्थिति संवेधं च भिन्नरूपेग जानीयादिति ९ । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'गेवेज्जगदेवा ण भंते ! कोहिंतो उववज्जति' हे भदन्त ! ग्रैवेयक देवों में किस गति से आये हुए जीव उत्पन्न होते हैं ? अर्थात्- किस गति के जीव ग्रैवेयकदेवों के रूप में उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एसचेव वत्तव्यया हे गौतम ! जैसी वक्तव्यता अच्युतदेव प्रकरण में कही गई है वही वक्तव्यता यहां पर भी कहनी चाहिये। परन्तु अच्युतदेव की अपेक्षा संहनन में जो विलक्षणता है वह 'नवरं दो संख्यणा' इस सूत्रपाठ से प्रकट की गई है। इसके द्वारा यह समझाया गया है कि यहां पर वज्रपलनाराच संहनन और ऋषभनाराच संहनन ये दो संहनन होते हैं पर अच्युतदेवों में तीन संहननवाले उत्पन्न होते हैं और यहां केवल दो संहननवाले ही उत्पन्न होते है । इस प्रकार से अच्युतदेव प्रकरण की अपेक्षा इस प्रकरण में भिन्नता है 'ठिई संवेधं च जाणेज्जा' इसी प्रकार से अवेयकदेवों की स्थिति और कायसंवेध भी भिन्न २ है। ये गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछे छे ,-'गेवेज्जगदेवा गं भंते !. कमोहितो उबवज्जति' मापन अवेयहेवामा गतिमाथी- मालाउत्पन्न- थाय-छे-१- 241-प्रश्न उत्तरमा प्रभु-डे-छ-3-'एस-चेव चत्तव्यया' હે ગૌતમ ! જે પ્રમાણેનું કથન અચુત દેવના પ્રકરણમાં કહેવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં પણ કહેવું જોઈએ. પરંતુ અચુત દેવે • समधी ४थन ४२ती सहनन द्वारमा विलक्षा ' भावे . ते 'नवर दो स घयणा 24। सूत्राथी प्रगट ४२०-छे मा सूत्रपा४था से समन्यु छ કે-અહિં વાકાષભનારા સંહનન અને ત્રાષભનારા સંહનન-એ બે સંતું. તને હોય છે પરંતુ અશ્રુત દેવોમાં ત્રણ સંહનનવાળા ઉત્પન્ન થાય છે. અને અહિયાં કેવળ બે સંહનનવાળા જ ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે એમ્યુત वन। ४२६१ना ४थन ४२di मा ५४२i Yetiy वि. 'ठिई संवेह जाणेज्जा' मा शत अवेय: पोनी स्थिति भने यस ५ Ft .
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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