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________________ भगवती सूत्रे ઘઉં 9 विपिलिमोझिए उपज्जेज्जा' उत्कर्तेवाऽपि त्रिपल्पोपमस्थितिके पु देवेत्पद्येव तत्र च 'एस चे वक्तव्यया' एपैर - उपरिमदर्शितैत्र वक्तव्यता वक्तव्या । किन्तु स्थित्यादौ वैलक्षण्य भवति तदेव दर्शयति- 'नारं' इत्यादि । 'नव' ठिई जहन्नेणं तिन्नि पलिओ माई' नवरम् - केवलं स्थितिर्जघन्येन त्रीणि पोपमानि 'उको सेगवि तिन्नि पलिओनमाड ' उत्कर्षेणापि त्रीणि पल्लोपमान, जघन्योत्कृष्टाभ्यां त्रिपल्योपनात्मिका तृतीयगमे स्थिति थे । 'सेमं उहे ' शेष तथैत्र 'कलादे से जहन्नेणं उप्पलिभ'वाई' कालादेशेन जघन्येन पयल्योपमानि 'उक्कोसेण वि छप्प लिओ माई 'उत्कर्पेणाऽपि षट् पल्पोपमानि, जघन्योत्कृष्टाभ्यां काळादेशेन कायसंवेधः पट् पल्पोपमात्मको भवतीत्यर्थः ' एवइयं ० ' लोक में उत्पन्न होता है तथा 'उक्कोसेण वि तिपलिओचमट्टिएस उववज्जेज्जा' उत्कृष्ट से भी वह तीन पल्योपन की स्थिति वाले सौधर्मदेवलोक में उत्पन्न होता है 'एसचे वक्तव्या' इस सम्बन्ध में ओर अवशिष्ट द्वारों की वक्तव्यता ऊपर में दिखाये गये प्रथम गम की वक्तव्यता जैमी ही है । किन्तु यहां स्थिति आदि में जो भिन्नता है वह इस प्रकार से है - 'नवरं ठिई जहन्नेणं तिनि पलिओमाई, उक्को सेण वि तिन्नि लिओनमाई' यहां स्थिति जघन्य से तीन पत्योपम की है और उत्कृष्ट से भी वह तीन पल्योपम की है । 'सेसं तहेव' बाकी का ओर सब कथन पूर्वक्ति प्रथम गम के जैसा ही है । 'कालादेसेणं जहन्नेर्ण छपलिओमाई' यहां का संवेध जघन्य से काल की अपेक्षा ६ छह पल्योपम का है और उत्कृष्ट से भी वह ६ छह पत्थोपम का है अर्थात् काय संवेध यहां जघन्य और उत्कृष्ट से छह पल्घोपम का होता है 'एवइयं०' इस प्रकार थाय छे, तथा 'उक्को सेण वि तिपलिओचमट्टिइरसु ववज्जेज्जा' उत्दृष्टथी पशुतेनाशु पयोपनी स्थितिवाजा सौधर्म देवसेोभां उत्पन्न थाय छे. 'एस चेत्र चत्तव्वया' या संबंधां जाडीना द्वारा समधी उथन उपर अताववामां आवे પહેલા ગમના કથન પ્રમાણે જ છે પરંતુ અહિયાં સ્થિતિ વિગેરેના કથનમાં જે हा पाछे ते मा रीते छे - नवरं ठिई जहन्नेणं तिन्नि पलिओ माइ उक्कोसेमं वि तिन्नि पटिओवमाइ' मडियां स्थिति धन्यथी त्रयु यहयो यमनी छे, शाने उत्कृष्टथी आयु ते त्रायुपस्योपमनी छे, 'सेसं तद्देव' जाडीतुं जीजु तमाम थिन पडेला उडेल खाना पहेला शुभ प्रभा] ४ हे. 'काल देसेणं , जहन्ने छ पलिओचमाइ” अडियां यसवेष कधन्यथा अंजनी अपेक्षाओ ૬ છ-પલ્યાપમના છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ તે ૬ છ પચૈાપમના છે. અર્થાત્ કાસ વેધ અહિયાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી છ પલ્યોપમને હાય છે.
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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