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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २४ सु०९ सौधर्मदेवोत्पत्तिनिरूपणम् કર भणिता प्रथमगमोक्तमेव सर्वं द्वितीयगमेऽपि वक्तव्यमित्यर्थः । 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिभोवमाइ" नवरम् - केवलं कालादेशेन - काळा पेक्षया जघन्येन द्वे पल्योपमे 'उक्कोसेणं चत्तारि पलियोमाइ' उत्कर्षेण चत्वारि पल्योपमानि 'एवइयं कालं जाव करेज्जा' २ एतावन्त कालं गतिद्वयं सेवेत तथा एतावन्तमेव कालं यावत् उभयवती गमनागमने च कुर्यादिति द्वितीयो गमः २ | 'सो चैत्र उक्कलकालएि उपवन्नो' स एवासंख्पात कसं तिपञ्चेन्द्रि यतिर्यग्योनिक जीन एव उ कृ कालस्थिति केषु सौधर्मदेवेषु यदा समुत्पद्यने तदा'जहन्नेणं तिपलिप्रोनट्ठिएस' जनन्येन त्रिपल्योपमस्थितिक देवेषु तथा-'उक्को पता कहनी चाहिये । अर्थात् द्वितीय गम में भी यही प्रथमनमोक्त वक्तव्यता सब कहनी चाहिये 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलित्रो चमा" परन्तु काल की अपेक्षा काय संवेध जघन्य से दो पल्योपम का है और 'उक्काणं चत्तारि पलिओदमाह" उत्कृष्ट से वह चार पल्यो मका है एवं कालं जाव करेज्जा' इस प्रकार से वह जीव इतने काल तक दोनों गति का सेवन करता है और इतने ही कालतक वह उन दोनों गतियों में गमनागमन करता है। ऐसा तह द्वितीय गम है २| 'सो चेव उक्कोसका लट्ठिएस उबवनो' वही असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जब सत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होने के योग्य होता है तब वह 'जहन्नेणं तिपलिओ महिइएस' जघन्य से तीन पल्योपम की स्थिति वाले देव અર્થાત્ ખીજા ગમમાં પણ આ પહેલા ગમમાં કહ્યા પ્રમાણેનું જ કથન કહેવુ. :लेखे 'नत्र काल देसेणं जहन्नेणं दो पलिओ माई' परंतु अजनी अपेक्षाथी अयसवैध धन्यथी में होपमा छे, भने “उक्कोसेणं चत्तारि पलिओ - माई' दृष्टथी ते यार पस्योपभ छे, 'एवइयं जाव करेज्जा' मा रीते ते જીત્ર આટલા કાળ સુધી દેવગતિનુ સેત્રન કરે છે અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં એટલે એક ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે એ પ્રમાણેના સા બીજો ગમ કહ્યો છે. ર 31F 'सो चैव उक्को का इस उववन्नो' ते असण्यात वर्षांनी આયુષ્ય વાળા સ'ની પ'ચેન્દ્રિય તિય ચ ચેાનિવાળા જીવ જ્યારે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળા સૌધમ દેવલે કમાં ઉત્પન્ન થવાને ચેાગ્ય હાય છે, ત્યારે તે નહન્સેન तिपलि ओवमट्टिइएस' ०४ धन्यथी त्रयु पयोषमनी स्थितिवाणा द्वेष,भां उत्पन्न
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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