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________________ ३५९ प्रेमैयमिद्रका टीका श०२४ उ.२१ सू०१ मनुष्याणामुत्पत्तिनिरूपणम् णादिद्वारजातं कथित तथैव बालुकाप्रमाधूमपमापकपमातमममानारकपर्यन्तपकरणेष्वपि परिमाणादिद्वारनातं विवेचनीयमिति प्रथमगमादारभ्य नवमगमान्तेषु नवस्वपि गमकेषु सर्वं ज्ञातव्यमिति ९। अथ तिर्यग्योनिकेभ्यो मनुष्यमुत्पादय नाह 'जइ निरिक्ख जोणिएहितो' इत्यादि । 'जह तिरिक्वजोणिएहितो उपचन ते' यदि तिर्यग्योनिशेभ्यो मनुष्या उत्पद्यते तदा 'कि एगिदियः तिरिक्खजोणिएहितो उवबज्जति' किमेकेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य आगत्य मनुष्या उत्पद्यन्ते 'जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उपवज्जति' यावत् पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्पयन्ते, अत्र या पदेन द्वीन्द्रियेभ्य आगत्य अथवा रत्नप्रभा पृथिवी के नरयिक प्रकरण में परिमाण आदि द्वारों का कथन किया गया है उसी प्रकार से बाल कांप्रभा धूमप्र मा, पङ्कन भा, एवं तम प्रभा तक के नारक प्रकरण में भी परिमाण आदि द्वारों का विवेचन कर लेना चाहिये। इस प्रकार से प्रथम गम से लेकर नौवे गम तक के नो गमकों में सर्व कथन यहां जानना चाहिये। __ अप गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जह तिरिक्ख जोणिएहितो उववज्जति' हे भदन्त ! यदि तिर्यग्योनिकों से आकर के मनुष्य उत्पन्न होते हैं तो 'किमेगिदियतिरिक्ख न णिएहितो ऽववतति' क्या वे मनुष्य एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् 'पंचिंदिय तिरिक्ख जोगिएहितो उववज्जति' पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से आकर के वे मनुष्य उत्पन्न होते हैं ? यहां यावत् शब्द से ऐमा पाठ ग्रहण हुआ है कि क्या वे द्वीन्द्रियों से आकरके अथवा પરિમાણ વિગેરે દ્વારાના સંબધનું કથન કરેલ છે. તે જ રીતે વાલુકાપ્રભા, ધુમપ્રભા, પંકપ્રભા, અને તેમા ખભા સુધીના નારકેના પ્રકરણમાં પણ પરિ. માણ વિગેરે કારોના સંબંધી વિવેચન સમજી લેવું. આ રીતે પહેલા ગામથી આરંભીને નવમા ગમ સુધીના નવે ગમનું તમામ કથન અહિયાં સમજી લેવું वे गीतमस्वामी. प्रभु से पूछे छे है-'जइ तिरिक्खजोणिएहितो खबज्जति' मगवन तिय योनिमाथी मावार, मनुष्य उत्पन्न थाय छे, तो 'किमेगिदियतिरिक्खज़ोणिएहि तो' शु,ते . मनुष्य। घन्द्रियाणा तियय योनिमाथी मावी उत्पन्न थाय छ १ अथवा यावत् 'पधि दियतिरिक्खजोणिहितो उववज्जति' ,५थेन्द्रियतिय य योनिमाथी, मावान મનમાં ઉત્પન્ન થાય છે? અહિયા યાવત પરથી નીચે પ્રમાણેનો પાઠ ગ્રહણ કરે છે તેઓ બે ઈદ્ધિવાળા તિર્યંચ ચેનિકમાંથી આવીને,
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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