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________________ प्रेमैयबन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् १४१ पर्यन्तम् देवगतौ पृथिवीगतीच गमनागमने कुर्यादिति प्रथमो गमः १ । एवं णत्र वि गमा यत्रा' एवम् अनन्तरपदर्शित प्रथमगमवत् नवापि गमाः द्वितीयाधारभ्य नवान्ता नेतव्या, नवस्वपि गमकेषु योजना कर्तव्या इति । 'नवरं मझिल्लएसु पच्छिल्लंएमु तिमु वि गमएसु अमुरकुमाराणं ठिइविसेसो जाणियबो' नवरम्केवलं मध्यमकेषु पश्चिमेषु च त्रिष्वपि गमकेषु असुरकुमाराणं स्थितिविशेपो ज्ञातध्या, अयमत्र स्थितिविशेषः मध्यमगमेषु जघन्योत्कृष्टासुरकुमाराणाम् दशवर्ष सह. स्राणि स्थितिभवति तथा चरमगमेषु च साधिकं सागरोपमं भवतीति । 'सेसा ओहिया चेव लदी' शेषा औधिका एष लब्धिः-शेषा स्थित्यतिरिक्ता लब्धि:-प्राप्तिः सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उसमें गमनागमन करता है । ऐसा यह प्रथम गम है। ____ एवं णव विममा णेयव्वा' इस प्रकटित प्रथमगम के जैले ही नौ गम जानना चाहिये-द्वितीय गम से लेकर ९ वें गम त के आठ गम प्रथम गम के जैसे ही समझना चाहिये-'नवरं मज्झिल्लएस पच्छिल्लएस्सुतिसु वि गमएल असुरकुमाराणं ठिई विसेसो जाणियव्यो' पर विशेषता ऐसी है कि मध्य के जो तीन गम ४-५-६ हैं और अन्त के जो तीन गम हैं ७-८-९ हैं इनमें असुरकुमारों की स्थिति के सम्बन्ध में अन्तर है, अध्य के तीन गमों में असुरकुमारों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्ष की है तथा अन्त के तीन गमों में साधिक सागरोएम है। 'सेसा ओहिया चेव लद्धी पाकी का और सप कथन इन गमों में प्रथम गम जैसा ही जानना चाहिये, कायसंवेध इन જીવ દેવગતિનું અને પૃથ્વીકાયિક ગતિનું સેવન કરે છે, અને એટલાજ કાળ સુધી તે તેમાં ગમનાગમન કરે છે. એ રીતે આ પહેલે ગમ કહ્યો છે. एवं णव वि गमा णेयव्वा' मतावर पडसा गम प्रभाव नव ગમે સમજવા-બીજ ગમથી લઈને નવમા ગમ સુધીના આઠ ગમે . प। म प्रमाणे छे. तेभ समा'. 'नवर मझिल्लएसु तिसु वि गमएसु असुरकुमाराणं ठिइविसेम्रो जाणियव्वा' ५२'तु विशेषपाय मध्यना ४-५-६ गभा छ भने छेदसा २ ७-८-८ सत्र गमा छे. तमा અસુરકુમારની સ્થિતિના સંબંધમાં જુદા પણ છે. મધ્યના ત્રણ ગામોમાં અસ રકુમારની જઘન્ય સ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની છે, તથા છેલ્લા ત્રણ ગમેમાં साधि सागरा५म छ 'सेसा ओहिया चेव द्धी' माडीनु भा तमाम थन આ ગામોમાં પહેલા ગમ પ્રમાણે છે. તેમ સમજવુ આ તમામ ગામોમાં
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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