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६२ . . , ... . . . . भगवतीस्त्र 'एयासु णं भंते !' एनासु खलु भदन्त ! 'तीसाए अकम्मभूमिसु' निंशति अकर्मभूमिषु 'अत्यि उस्सप्पिणीइ वा ओसप्पिणीइ वा' अस्ति-विद्यते उत्सर्पिणीति वा
सर्पिणीति वा हे भदन्त ! अकर्मभूमिषु उत्सविण्यवसर्पिणीकालौ भक्तो न वेति प्रश्नः, भगपानाह-'णो इणढे समटे' नायमर्थः समर्थः, हे गौतम ! अकर्मपांच हैरण्यक्त, पाँच हरिवर्ष, पांच रम्पकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु, जम्बूदीप नाम के द्वीप में 'भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐंरक्त ये सात क्षेत्र हैं इनमें भरत, महाविदेह और ऐवत कर्मभूमि के क्षेत्र है और बाकी के ४ क्षेत्र तथा विदेह क्षेत्र के पास के उत्तरकुरु और देवकुरू ये अकर्मभूमि के क्षेत्र हैं, जम्बू. द्वीपमें जिस प्रकार से ये सात क्षेत्र हैं उसी प्रकार से धातकीखंड में और पुष्कराध में ये सब दूने २ हैं । इस प्रकार से ये सब पॉच देवकुरु और पाँच उत्तरकुरुओं के साथ मिलकर ४५ हो जाते हैं इनमें १५ कर्मभूमि संबन्धी क्षेत्र हैं और बाकी के ३० अकर्मभमि संपन्धी क्षेत्र हैं। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- एयास गंभंते ! तीसाए अकम्मभूमिसु' हे भदन्त ! इन तीस अशर्मभूमियों में उत्सर्पिणी
और अवसर्पिणी काल का विभाग होता है या नहीं होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जो गढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ - नहीं है-अर्थात् तील अकर्मभूमियों में उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल का
રમ્યકવેષ, પાંચ દેવકર અને પાંચ ઉત્તરકુર, જંબુદ્વીપ નામના દ્વીપમાં ભરત, । भक्त, रि, विड, २०५१, २९य१त मने अरवत मा सात क्षेत्र छ.
તેમાં ભરત, મહાવિદેહ, અને ઐરવત કર્મભૂમિનું ક્ષેત્ર છે. અને બાકીના ૪ * ચાર ક્ષેત્રો તથા વિદેહક્ષેત્રની પાસેનું ઉત્તરકુર અને દેવકુરૂ એ કર્મભૂમિનું
ક્ષેત્ર છે. જે રીતે જંબુદ્વીપમાં આ ૭ સાત ક્ષેત્રો છે, એજ રીતે ધાતકી - ખંડમાં અને પુષ્કરામાં આ તમામ બમણું બમણું છે. આ રીતે આ બધા
પાંચ દેવકુફ અને પાંચ ઉત્તરકુરૂઓની સાથે મળવાથી ૪૫ પિસ્તાળીસ થઈ • જાય છે. આમાં ૧૫ પંદર કર્મભૂમિ સંબંધી ક્ષેત્ર છે. અને બાકીના ૩૦ ત્રીસ • भूमि समधी क्षेत्र छे. तेभ समर.
व गौतमस्वामी प्रभुने से पूछे छे है-'एयासु णं भंते ! तीसाए अकम्मभूमिप्नु' सन् 2 त्रीस अभूमियोमi Balgी मने अप. સર્પિણી કાળને વિભાગ થાય છે કે નથી થતું? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ । छ है-'णो इणटे खमढे गीत AL Aथ मरे१२ नथी. मातू त्रीस