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प्रेमेन्द्रिका टीका श० २० ७० ८० १ फर्मभूम्यादिकनिरूपणम् निरूप्य तहिरुद्रामकर्मभूमि संग्व्यया निरूपयिनुमाह-कह गं' इन्यादि, 'करणं भंते ! अकम्मभूमीओ पन्नत्तामो' कति खलु भदन्त ! अकर्मभूमयः प्राप्ताः कर्मभूपे: स्वरूपं प्रथमं निरूपितम् तद्विरुद्धे यमकर्मभूमिः क्रियतीति प्रश्नः। भगवानाह'गोपमा' इत्यादि, 'गोयना' हे गौतम ! 'तीसं अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ' त्रिंशन् अर्मभूमयः प्रज्ञप्ताः, 'तं जा' तथा 'पंच हेमरयाई पञ्च हैमवतानि पंच हेरन्न वयाई पञ्च हैरण्यवतानि, 'पंच हरिवासाई पञ्च हरिवगि , 'पंच रम्मगवासाई' पञ्च रम्यकथर्माणि 'पंच देवकुराई' पञ्च देवकुरवः, 'पंच उगाई' पश्चोत्तरकुरवः । दो ऐरवनक्षेत्र इस प्रकार ले ये पांच ऐश्वनक्षेत्र है । इमी प्रकार से जम्बूद्वीप संबन्धी एक महाविदेव, धानजीवंद्व सम्पन्धी दो महाविदेर
और पुज्जराध सम्बन्धी दो महाविदेह इस प्रकार से ये पॉच महाधिदेह है। ये सब मिलकर पन्द्रह कर्मभूमियाँ कही गई हैं। इनसे पाकी यची हुई जितनी भूमियां-क्षेत्र हैं वे सप अपने भूमियां हैं और इनकी संख्या ३० है यही विषय अब आगे स्पष्ट लिखा जाता है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'कह णं भंते ! अमम्मभूमीमो पण्णताओ' कर्मः भूमि से विरुद्ध अकर्मभूमियां कितनी कही गयी है ? तो इस प्रश्न के उत्ता में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! तीमं असम्मभूमी मी पण्णताओ' हे गौतम ! शर्मभूमि से विरुद्ध अकर्मभूनियां तीम कही गई हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-'पंच हेमवघाई, पंच हेरन्नयाई, पंच परिवासाई, पंच रम्नगवासाई, पंच देवराई, पंच उत्तरकुराई पांच हैमवत, ક્ષેત્ર છે. એજ રીતે જંબુદ્વીપ સંબંધી એક મહાવિદેહ, ધાતકી ખંડ સંબંધી છે મહાવિદેહ અને પુષ્પરાર્ધ સંબંધી બે મહાવિદેહ આ રીતે આ પાંચ મહાવિદેહ થાય છે. આ તમામ મળીને કર્મભૂમિ પંદર કહેલ છે. તેનાથી બાકી બલી જેટલી ભૂમિ-ક્ષેત્ર છે. તે તમામ કર્મભૂમી છે. અને તેની સંખ્યા ૩૦ થાય છે. આ તમામ વિષય હવે આગળ સ્પરતાપૂર્વક દેવામાં આવે છે.-આ સંબંધમાં તમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછ્યું છે કે
| अम्मभूमीओ पगलगो' १३ सपी . ભૂ િહે ભગવન કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં
छ -'गोयमा ! सी पासपीओ जी ! . ભથિી ઉલટી અકબૂમિ ૩૦ વીસ ડી છે. વા' જે આ પ્રમાણે છે'पंप हमयमा, पंच दणक्याः पंप हरिदार पंच रामगवासाद पंच दया कराई पंप उचरकुग' पांगत, ५in , in gu, पांच