________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श. २० उ.७ २०१ यन्धस्वरूपनिरूपणम् ४९ येनाइ-निरंतरं नाय वेमाणियाण' निन्तरं यावद्वैमानिकानाम् निग्न्तरम्अन्तररहिनं नारकादारभ्य वैमानिकानाम्-नारकादारभ्य त्रैमानिकपर्यन्तनीयराशीमम्बन्धिदर्शनमोहनीयस्य कर्मणविपकारको बन्धो ज्ञातव्य इति भावः । 'एवं चारित्तमोदणिज्जम्स वि जाव वेमाणियाग' एवं चारित्रमोहनीयस्यापि यावद्वैमानिकानाम्-एवं दर्शनमोहनीय कर्म गतिविधयन्धनन् चारित्रमोहनीयस्यापि वर्गणनिधिो बन्धोऽस्तीति जाता यम् । नारकादारग्य मानिकान्त जीवसम्बन्धिनारित्रमोहनीयम्यापि कर्मणरविश्य भरतीनि भावः। एवं पपणं कमेणं ओरालियसरीरात जान पग्नसरीरा' एनम्-पनेन उपरोक्ताप्रदर्शितमकारेण औदारिकगरीरस्य यावकारी मनीरस्तापि निधिो बन्यो ज्ञातम्या, अत्र यावत्सदेन आहार के जशरीराणां संगो भनति तथा
औदारिकावारम्वैक्रियतेजसकाम गपञ्चरकारकशरीरसंबन्धी विकारको कन्धो 'निरंतरं जाव वेमाणिगागं' इम नपाट माग समनाई गई है अर्थात् नैरविक से लेकर पैमानिक पर्यन्त मस्त जीव गशि संबंधी दर्शनमोहनीय नर्मका तीन प्रकार का बंध होता है, 'वं चारित्तमोहणिज्जस्स विजाव देनाणियाणं' दर्शनमोहनीय कर्म के तीन प्रकार के वंध के जसा चारित्रमोहनीय कर्म का भी बंध नारकले लेकर वैमानिकपन्त जीवों को तीन प्रकार का होता है एवं एगणं कमेणं ओरालियसरीरम्म जाव कम्म. गसरीरस्स' इसी उपरि प्रदर्शित प्रकारवाले मामा के अनुसार औदारिक शरीर का यावत् कार्मण शरीर का भी तीन प्रकार का बंध होता है यहाँ यावस्पद से आलारक, बैंक्रिय और तेजस इन तीन शरीरों का ग्रहण हुआ है इस प्रकार औदारिक, चक्रिय, आहारक, नेजस और कार्मण इन पांच शरीरों का तीन प्रकार का बंधोता है ऐसा जानना चाहिये 'माहारछ.ग पात निरंतरं जाय वेमाणियाग' आ सूत्रा समय અર્થાત નરયિક જીથી લઈને વૈમાનિક ધીને સઘળા જીવસમૂડને દર્શન भानीयमना १५
यार एवं पारित्तमोदणि जप विजाप माणियाण शनमाहनीय निशान भनी । ચારિત્રમોહનીય કર્મને બંધ પણ નારકી મનિટ સુધીના અને ત્રણ भारे याय छे. “एवं पएणं फमेणं ओरालयमगेम्स काय पम्गगसीरम्स' ઉપર કહેલ પ્રકારવાળા કમથી ઓરિક શરીરનો યાવત કામ શરીરને पr MR 4 याय छे. आलिया 41 पक्षी RIP ५, તેજસ, આ ત્રણ શરીર પ્રહ કરાયા છે. આ રીતે દારિક. पहिय, AIMIR, Hrस, भने मनमा पार सरीने ये ना