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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०३ जघन्यस्थितिकनैरयिकाणां निरूपणम् ३७५ एकसमयेन कियन्त उत्पधन्ते इति प्रश्नस्य जघन्यत एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टता संख्येया वा असंख्येा वा उत्पद्यन्ते, इत्युत्तरम् । एवं संहननावगाहना । संस्थानलेश्यादृष्टिज्ञानयोगोपयोगसाकारानाकारसंज्ञाकषायेन्द्रियसमुद्घातवेदनावे - दायुरध्यवसानानुबन्धाः सर्वेऽपि अत्र गणितव्या इति ।। 'से णं भंते' स:-पर्याप्तासंक्षिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक: खल्ल भदन्त ! 'पज्जतप्रसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोगिए' पर्याप्तासंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको भवेत् तदनन्त म् 'उकोसकाळदिइयरयणप्पभापुढविनेरइए' उत्कृष्टकालस्थितिकरत्नप्रभापृथिवी नैरयिको जाता, बार तक सभी परिमाण सम्बधी एवं संहनन आदि सम्बन्धी कथन यहां कह लेना चाहिये, एक समय में वे कितने उत्पन्न होते हैं ? तो इस प्रश्न का उत्तर ऐसा है कि वे जघन्य से तो एक अथवा दो अथवा तीन तक वहां उत्पन्न होते हैं, और उत्कृष्ट से संख्यात अथवा असं. ख्यात वे वहां उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार से संहनन, अवगाहना, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान योग, उपयोग, साकार अनाकार-संज्ञा कषाय, इन्द्रिय, समुद्घात, वेदना, वेद, आयु, अध्यवसान और अनुबन्ध ये सब द्वार भी यहां कह लेना चाहिये। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-से णं भंते .' 'पज्जत्तअसन्निपंचिदियतिरिक्खजोणिए' हे भदन्त । वह पर्याप्सअसंज्ञीपञ्चन्द्रियतियंग्योनिक जीव मरकर 'कोसकालहिइयरयणप्पभापुढविनेरइए' उत्कृष्ट कालकी स्थितिवाला रत्नप्रभा पृथिवी का नैरयिक यदि हो जाता है और સુધી પરિમાણ સંબંધી અને સંવનન વિગેરે સંબંધીનું તમામ કથન અહિયાં સમજી લેવું તેઓ એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નનો ઉત્તર એવો છે કે–તેઓ જ ઘન્યથી તે એક અથવા બે અથવા ત્રણ સુધી ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી સંથાત અથવા અસંખ્યાત તેઓ ત્યા ઉત્પન્ન થાય छे मे शत सहनन, भवशालना, संस्थान, वेश्या, हल्टि, ज्ञान, योग, ५ याग,-सा२ मन सना॥२ -सज्ञा, पाय, धन्द्रिय, समुद्धात, वहना, वह, આયુ, અથવસાન અને અનુબંધ આ તમામ દ્વારા પણ અહિયાં કહી લેવા.
__ गौतमस्वामी प्रभु ने पूछे थे -'से गं भंते भगवन पर्याप्त मसजी ५यन्द्रिय तिन्य योनीमा ते 4 'पज्जत्तसन्निपचि. दियतिरिक्खजोणिए' ५यति सससी पयन्द्रिय तिय स्यानिमशन कोस. कालदिइयर यणप्पभापुढविनेरइए' Gष्ट स्थितियाणा रत्नमा पृथ्वीना नविन