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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०६ ०१ पृथिव्यादिजीवपरिणामनिरूपणम् ७ तदा समुद्घातमारम्भ एव मृतः सन् पूर्वशरीरं देशनः परित्यज्य ईलिकागत्या गत्वा तत्रोत्पद्यते स पूर्वमान्य पश्चादुन्पद्यते । यस्तु यदा सर्वतः समुद्घानं करोति स तदा समुद्घातानित्तो भूत्वा म्रियते अतः स गेन्दुकगत्या सर्वात्मा प्रदेशैरतत्र गत्वा पूर्वमुत्पयते पधादाहारग्रहणं करोतीति भावः । एतदेव सर्वम् , 'जार से तेणटेणं गोयमा एवं बुना, पुन्धि वा जाब स्वबज्जेज्जा' यावत् तत्तेनार्धन गौतम ! एवमुच्यते पूर्व वा यावन् उत्पद्येन, अनेन वाक्यसमु दायेन कथितम् । सादशशतकीयपष्टोदेशरूपकरणापेक्षया प्रकृतप्रकरणम्य यो भेदः तमेव दर्शयति-'णवरं' इत्यादि, णवरं तेहि संपाउणणाहमे हि आहारो भन्नई वहाँ उत्पन्न हो जाता है और बाद में आहारग्रहण करता है इस प्रकार जो जीव जिस समय देश से समुद्रात करता है वह जीव उस समय समुदघात के प्रारम्भकाल में ही मरण करता हुभा पूर्वशरीर पो एकदेश से छोड देना है और छोडकर ईलिकागति से वहां जाकर उत्पन्न हो जाता है ऐसा वर जीव पहिले आझार करता है और पाद में वहां उत्पन्न होता है ऐसा कहा जाता है और जो जीव जिस समय सर्वदेश से समुद्घात करता है वह उस समय समुद्घात से निवृत्त होकर मरता है अतः वह कन्दुकगति से अपने सर्वात्मप्रदेशों से वहां जाकर पहिले उत्पन्न हो जाता है और बाद में आहार ग्रहण करता है-यही बात 'जाव से तेणट्टणं गोयमा ! एवं चुच्चद, पुब्बि दा जाप उववज्जेजा' इस सूत्रपाठ द्वारा यहां समझाया गया है यहां पर जो विशेषता है वह 'णवरं०' इस पाठ से कही गई है कि उनमें प्राप्त છે, તે પહેલાં ત્યાં ઉત્પન થઈ જાય છે. અને તે પછી આહાર ગ્રહુ કરે છે, એ રીતે જે જીવ જે સમય અને દેશથી સમુદ્રઘાત કરે છે, તે જીવ તે સમયે સમુદ્રઘાતના આરંભ સમયે જ મરણ કરીને પૂર્વ શરીરને એકદેશી છેડી રે છે, અને છેડીને ઇલિકા (ઈયળની) ગતિથી ત્યાં ઉત્પન થઈ જાય છે. એ તે જીવ પહેલાં આહાર કરે છે અને તે પછી ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને જે જીવ જે સમયે સર્વદેશી સમુદૃઘાત કરે છે, તે એ સમયે સમૃઘાતથી નિવૃત્ત થઈને મરે છે, તેથી તે મરીને ક–દડાની ગતિથી પિતાના તમામ આત્મપ્રદેશથી ત્યાં જઈને પહેલાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે, અને તે પછી माहार ASEA ४३ छ. मे पात 'ज.व से तेणट्टणं गोचमा ! एवं पर पुन्धि वा जाव उवाजा' मा सत्रा द्वारा समानामा भारत है. भामा २ विश५५. छ. ते 'वर' से पायी है. तमां पास
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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