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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२१ व. १ २.१ औषधिवनस्पतिशाल्यादिगतजीवम् २०७ यथोत्पलोत्पलोद्देश के 'गोयमा! नो अवंधगा वंधगा' हे गौतम ! ते जीवा ज्ञाना'वरणीयस्य कर्मणो नो अबन्धकाः किन्तु बन्धका एव भवन्ति । एवं जाव अंतराइयस्य' एवं यावत् अन्तरायकर्मपर्यन्तस्य विषयेऽपि विज्ञेयम् , 'एवं वेदे वि' एवं ज्ञानावरण बन्धकवदेव वेदेऽपि वेदकविपयेऽपि ज्ञातव्यम् । ते खलु जीवा ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः नो अनुदयिनः किन्तु उदयिन एव । 'उदीरणायामपि-ते खल्लु जीवा ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः नो अनुदीरकाः किन्तु उदीरका एव । एवं सर्वत्र दर्शनावरणीयादारभ्य अन्तरायपर्यन्तानां समानामपि कर्मणां विषये आलापकाः जीव ज्ञानावरणीय कर्मके बंधक ही होते हैं-प्रबन्धक नहीं होते हैं-'एवं जाव अंरायल' इसी प्रकार का कथन यावत् अन्तराय कर्म के विषय में भी जानना चाहिये, तात्पर्य यही है कि वे जीय सब के सब ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु नाम, गोत्र,
और अन्तराय इन आठों कर्मों के बंधक ही होते हैं । 'एवं वेदे वि' इसी प्रकार का कथन वेदक के विषय में भी जानना चाहिये-अर्थात-वे सब के सब जीव ज्ञानावरणीय कर्म के अवेदक नहीं होते हैं-किन्तुवेदक ही होते हैं। 'उदए वि' उदय के संबंध में भी ऐसा ही कथन करना चाहिये अर्थात् वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदयवाले ही होते हैं-अनुदयवाले नहीं होते हैं । 'उदीरणाए वि' इसी प्रकार से उदीरणा के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये अर्थात् वे सब के सब जीव ज्ञानावणीय कर्म के अनुदीरक नहीं होते हैं किन्तु उदीरक ही होते हैं। इसी प्रकार 'जहा उप्पलुद्देसे' गौतमी ते ७ जाना१२०ीय मन। म ४२वावाणा डाय छ, समय डताना 'एवं जाव अंतराइयस्स' या प्रमाणे ४थन થાવત્ અંતરાય કર્મના વિષયમાં પણ સમજી લેવું કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તે બધાજ જી જ્ઞાનાવરણીય, દર્શન વરણીય, વેદનીય મેહનીય આયુ, નામ, ગોત્ર, અને અન્તરાય આ આઠે કર્મોને બંધ કરવાવાળા હોય છે. 'एवं वेदेवि' म प्रभानु ४२१ ३:ना समयमा ५ सभा मत તે તમામ જી જ્ઞાનાવરણીય કર્મના અવેદક હોતા નથી–પરંતુ વેદકજ હોય છે. “રવિ ઉદયના સંબંધમાં પણ આ જ પ્રમાણેનું કથન સમજી લેવું. અથત તે બધા જ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના ઉદયવાળા જ હોય છે ઉદય વિનાના डता नथी 'उदीरणाएवि' सारा प्रमाणे जहीराना समयमा पशु सभड से અર્થત તે બધા જ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના ઉદયવિનાના (અનુદીરક) હેતા નથી. પરંતુ ઉદીરક-ઉદયવાળા જ હોય છે. આ પ્રમાણે બધે જ દર્શનાવરણીય